Wednesday, 3 July 2024

 

प्रतीक्षालय एक विकल्प -रेलवे स्टेशन पर अद्भुत महिलाऐं -

अभी कुछ समय की बात है,मैं आदरणीया आशा शैली मैम के साथ साहित्यिक भ्रमण पर,चंडीगढ़ होते हुए शिमला गई थी। वहां से लौटते समय हमारी हल्द्वानी की टिकिट हरिद्वार से सुबह 12:45 की थी। हमलोग शाम 5-6 बजे हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए। हमारी ट्रेन के आने में 6-7 घंटे थे प्रतीक्षा का समय अधिक था सो हमलोगों ने "वेटिंग रूम " में अपना स्थान बनाना उचित समझा।इससे पहले भी हमलोगों ने हरिद्वार स्टेशन पर इंतजार किया है पर तब 3-4 घंटे ही रहे होंगे। "वेटिंग रूम" में अच्छी-भली भीड़-भाड़ और चहलकदमी थी ,महिलाऐं अधिक थीं बाद में पता चला कि वो वेटिंग रूम महिलाओं के लिए ही था। यदि किसी के साथ पुरुष भी है तो उन्हें "कॉमन रूम" में रुकना पड़ेगा। जो भी हो हमें एक स्टील वाली बेंच खाली मिल गई,कई बेंच लोगों ने रिजर्व कर रखी थीं अर्थात उनपर सामान रखा था। हमलोगों ने उस खाली बेंच के पास जमीन पर अपने बड़े बैग रख लिए,खाने-पीने के सामान वाले छोटे बैग और और पर्स इत्यादि बेंच पर रख लिए।

मैम ने अपना एक मोबाईल चार्जिंग में लगा दिया दूसरे से अपने दिनभर के साहित्यिक कर्म निबटाने लगीं। मैं दिनभर की जाम अपनी “ग्यारह नंबर की साइकल” को थोड़ा चलाने की कोशिश में बाहर को निकलने लगी साथ ही चाय का प्रबंध भी करना था सो जैसे ही मैंने अपना “स्लिंग बैग” उठाया एक होमगार्ड ने बड़ी तेजी से सीटी बजाई और कभी आराम से कभी हेकड़ी से पुरुषो को वहां से जाने को कहने लगा। थोड़ी-बहुत ना-नुकुर के बाद लोग वहां से चले गए। कुछ ही देर बाद एक महिला खूब तेजी से रौबीली आवाज में बोलने लगी " कोई पंखा बंद नहीं करेगा ,सारे पंखे चलने दो ,कितनी गरमी और मच्छर हैं ,कितनी भीड़ मचा रखी है पता नहीं कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं " ऐसे ही वाक्य वो कमसे कम पंद्रह मिनट तक बोलती रही कभी इधर तेजी से दौड़ती कभी उधर उछल कर भागती।यहाँ यही कोई 5-6 सीलिंग फैन रहे होंगे। हमारी बेंच के पास एक संयुक्त परिवारबैठा था जिनके साथ दो-तीन जगह लड्डू गोपाल जी थे टोकरियों में (ये आजकल ट्रेंडिंग में है ) जो मथुरा-वृन्दावन से दर्शन करके आ रहा होगा। वो हमारे बाद आये सो उस महिला का व्यवहार देखकर थोड़ा सहम गए। ऐसी एक नहीं,दो तीन महिलाऐं थीं जो बारी-बारी से आ जा रहीं थीं। कोई-कोई तो उस होमगार्ड से ना जाने क्या-क्या कह कर आती जो उसे बार-बार छान-बीन करने आना पड़ता।   

अब मेरे पास इन महिलाओं के लिए दो राय तो बन ही गईं थीं या तो ये अर्धविक्षिप्त हैं या अर्धविक्षिप्तता की आड़ लेकर यहाँ अपना ठिकाना बनाए हैं। एक एकाधिकार सा देखने को मिला इनलोगों का इस वेटिंग रूम में। तीसरी राय ये भी थी कि ये चोरी करने का भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। मैंने मैम से सावधानी से रहने को कहा और वहां से चली गई।

मैं पुनः यही कोई आधे घंटे बाद कुछ खाने-पीने का सामान और चाय लेकर आई तब वहाँ का दृश्य  पहले से और अधिक रहस्यमई था। अब एक नया थानेदार अर्थात इनसे कहीं अधिक तेज-तर्रार महिला आ चुकी थी उसने जाली के पास कोने वाली एक पूरी बेंच पर कब्ज़ा कर रखा था और जो थोड़ी सीधी-साधी महिलाऐं थीं वो डरी-सहमी सी उससे दूर जाकर जमीन पर लेट गईं या बैठ गईं। वो लड्डू गोपाल वाला परिवार भी थोड़ा और डर गया क्योंकि उनके पास सामान अत्यधिक था जिसकी रखवाली आसान नहीं थी, क्योंकि वह तेजी से उठती कभी पंखा चलाती कभी अपने बेंच के आस-पास लेटी महिलाओं को उठा देती ,कभी जोर से चीखती "रस्ते में मत लेटो,माता रानी कहाँ से आएगी ? कैसे आएगी "कुछ अपशब्द भी बोल दे रही थी। 

                                                                    

                                                          माता रानी कहाँ से आएगी ? 

 कुछ देर बाद वह महिला बड़े ही करीने सी अपने बाल बनाती है। पर उसे अपने कपड़ों का कुछ होश नहीं हो जैसे,कुर्ते का गला कितना मुँह फाड़ रहा है वो इससे बेपरवाह है ,उसकी इस हरकत से लगता है कि वह सच में विक्षिप्त है पर अगले ही पल शॉल को बड़े ढंग से ओढ़ती है जिससे उसपर पुनः शंका होती है और मेरा स्वयं का अनुमान डगमगा जाता है।जाती फ़रवरी की सर्दी का हाल आप भी जानते होंगे। उसके पास दो-तीन पॉलीथिन थीं जिनमें पता नहीं क्या-क्या जो भरा होगा। खाने-पीने के सामान के साथ ढेर सारे सिक्के और नोट भी थे। मैंने बचते-बचाते उसके कई विडिओ और फोटो भी लिए ,पता नहीं कब उसपर कौनसी देवी आ जाए और सबकी रील और स्टोरी बना दे।  

                                                                      

क्रिया-कलाप

कुछ समय बाद वह अपने सामान को करीने करके उसी बेंच पर लेट गई थोड़ी देर को लगा कि सो गई पर अगले ही पल फिर बैठकर जोर-जोर से बोलने लगी और पुनः लेट गई इनसब क्रिया-कलापों के बीच उसका खान-पीना भी चलता रहा।

पिछली सभी राय पर भारी मेरी एक राय यह बनी कि हो सकता है ये एकल महिलाऐं हों या इनके अपने ही इनको अपने साथ रखने को तैयार ना हों और इन्हें ये माध्यम सबसे उचित लगा हो। एक कहावत है न कि "जो डरता है वही अधिक चीख-पुकार करता है " इससे पहले कि आपको कोई डराए-धमकाए आप खुद ही उसपर अकारण बरस पड़ो ,झंझट खतम। जो भी हो मेरे लिए ये बड़े ही कुतूहल का समय था।

पर होते-होते हमारी ट्रेन का समय भी हो गया सो मैं सभी से जय रामजी की कह कर वहां से अपने गंतव्य को चल दी।   

  प्रतीक्षालय एक विकल्प -रेलवे स्टेशन पर अद्भुत महिलाऐं - अभी कुछ समय की बात है,मैं आदरणीया आशा शैली मैम के साथ साहित्यिक भ्रमण पर,चंडीगढ़ ...