Wednesday 28 July 2021

#डर भगाते बाजार के उपकरणों में एक यन्त्र और - काली डायन

 अभी 5-6 दिन पहले भैया ये सोया लाए  क्या गज्जब नाम है "काली डायन " 5 रूपए के इस सोया पैक में 5-

काली डायन 



    👱बच्चों के 5-10 रूपए वाले पैकेट बंद खाद्य पदार्थ जिन्हें बनाने वाले बच्चों को लुभाने के भागीरथी प्रयास करते आए हैं इन्ही में से एक नया उत्पाद आया है जिसका वर्णन इस लेख में किया गया है। लेख लिखने तक ये तो यू ट्यूब पर था ही कहीं और ढूँढने से मिला।

        10 रूपए की कीमत का ही वॉल पैन भी है। आप भी समझ गए होंगे ,बाजार में उतरो तो चाहे "मीनिंग लैस" ही हो पर कुछ अलग या बेहूदा करो तभी जल्दी हाइलाइट होंगे नहीं तो घाटे में चलाते रहो व्यापार " हमारे यहाँ के गौसेवा के जैसे " हम गाय चाहे दूध दे रही है या नहीं पर उसके खाने-पीने का समान ध्यान रखते हैं। लोग आग्रह करके गायों को हमारे यहां मात्र सेवा के लिए छोड़ जाना चाहते हैं जो खाली गाय को नहीं पाल सकते। सड़क पर घूमती जर्जर गाय के साथ सेल्फी लेकर इंस्टाग्राम ,फेसबुक आदि पर डालने के पक्षधर लोग केवल अपनी खोखली प्रसिद्धि को बनाए रखना चाहते हैं वास्तविकता में इस कार्य में अपना समय-धन और मेहनत देने वाले काम ही हैं। व्यापार और सेवा में अंतर समझना जरूरी है।

             💁लेकिन इसका एक दूसरा पक्ष भी है -हालाँकि अब बच्चे बहुत -बहुत ज्यादा स्मार्ट हैं 3rd -6th कक्षाओं तक के बच्चे भी आज परियों की कहानी नहीं वरन भूत -चुड़ैल आदि की कहानी सुनना चाहते हैं। फिर भी ,इनसे छोटे बच्चों का डर खतम करने के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है कि अब "डायन "से डरने की जरूरत नहीं क्योंकि बच्चे ने डायन को खा लिया। ऐसा मैं इसलिए कह सकती हूं क्योंकि मेरे पास एक ठोस सुबूत है।

            🐘मेरी मम्मी बचपन में हाथी से बहुत डरतीं थीं। हाथी के ऊपर दोनों ओर लटकते पीतल के घंटों(जैसे मंदिरों में लटके होते हैं ) की टन-टन बहुत दूर से सुन लेतीं थीं,आवाज सुनते ही वो घर में अपने हिसाब से किसी सुरक्षित स्थान पर छुप जातीं  और जब वो हाथी वाला हाथी को ले कर चला जाता उसके भी काफी देर तक वो बाहर नहीं आतीं।घरवालों को जब ये सिलसिला खतम होते नहीं दिखा तो उनके चाचा जी ने उन्हें दीपावली के समय आने वाले "खांड़ के खिलोने वाला हाथी " खिला दिया और उनको समझाया कि अब मत डरना कभी !क्योंकि तुमने तो हाथी खा लिया जैसा छोटे बच्चे करते हैं मम्मी ने भी अपने हिसाब से उस समय, उस खांड़ के हाथी का विश्लेषण किया होगा और अपने चाचा जी की बात को सही मान लिया।

           घंटों की टन-टन बहुत दूर से सुन लेतीं थीं मैंने भी हाथियों से कदमताल करती घंटों की आवाज खूब सुनी है।पर ये मैं आज तक पता नहीं कर सकी कि इन घंटों के लटकने का ठोस कारण क्या है ? हमारी अपनी अटकलें तो कई हो सकतीं है जैसे -

👉 दूर से ही पता चल जाए कि कोई बड़ा जीव आ रहा है। 

 👉 या हाथी वाले बाबा आ रहे हैं और वो कुछ ना कुछ मांगेगे भी और हाथी देखने को भी मिलेगा। 

 👉 या हाथी को कुछ अच्छा लगता हो चलने में आवाज के साथ कदम मिला कर 

 👉 या जिनको डर लगता हो वो पहले ही अपना सुरक्षित स्थान ढूंढ ले हमारी मम्मी की तरह , ऐसे  

      ही और ना जाने कितने ये-वो-सो ..............

         जब हम उत्तर प्रदेश में थे तो हमारे घर से कुछ दूरी पर, मंदिर पर ज्यादातर ऐसे साधू-संत ठहरते थे जिनके पास हाथी होते थे।हमलोग खूब देर तक देखते रहते थे उन हाथियों के क्रिया-कलाप। वो लोग उनको बहुत मोटी-मोटी रोटियां बना के खिलाते थे जिन्हें -अंगा बोला जाता था ,पर तब हमें या हमारे परिजनों को ये डर नहीं था कि हम लड़की हैं वहां भी जब कभी हाथी वाले बाबा जी आते थे और सबसे चंदा ले जाते थे हाथी को खिलाने के लिए।कुछ लोग स्वेच्छा से खाने के लिए भी देते थे हाथी को। कुछ अपने बच्चों को बिठाते थे हाथी की पीठ पर वो भी शायद अपने बच्चे के मन से हाथी का डर निकालना चाहते होंगे। हो सकता है छोटे बच्चे इतने विशालकाय जीव से सामंजस्य ना बिठा पाते होंगे। और इस बेचारे जीव की त्वचा इतनी अधिक संवेदनशील होती है कि चींटी और मच्छर के काटने से घाव हो जाते हैं सो चलते में अपनी सूंड़ से फूंक-फूंक के कदम रखते हैं। इस सब के साथ सर्कस में खूब देखा है इनको विभिन्न करतब दिखाते हुए। वहां तो जब काली जुलुस या राम बारात आदि जैसी कोई यात्रा निकलती थी तो अलग-अलग तरह से सजे हुए हाथियों को भी सम्मिलित किया जाता था। अब और ज्यादा कुछ नहीं कहूंगी नहीं तो राजनीति की पार्टी विशेष बुरा मान सकती है। 🙏  

हाथी




          आज भी आप बाजार में देखेंगे कि दीपावली के समय खील -बतासे के साथ ,खांड़ (एक प्रकार की शक्कर )से बने विभिन्न जानवरों ,झुनझुनों, मंदिर ,सितारा आदि की आकृति वाले खिलौने मिलते हैं। पर वर्तमान समय के ज्यादातर बच्चे उस खिलौने को खा कर डर भागने से तालमेल नहीं बिठा पाएंगे हां कुछ  छोटे बच्चे कैसे कुछ चीजों और बातों को अपने अनुसार गढ़ लेते हैं और उसी के अनुसार क्रिया-कलाप करते हैं।आज भी ऐसे बच्चे हैं जो कुछ चीजों से डरते या असमंजस में पड़ जाते हैं। कुकर की सीटी की आवाज ,मिक्सी की आवाज इलैक्ट्रोनिक खिलौने आदि से कुतूहल दिखाते हैं। उस समय से मम्मी ने हाथी से डरना बंद कर दिया। मम्मी हमेशा खिलखिला कर हंस देतीं थीं अपने इस भोलेपन को बताने पर।

खिलौने




 

             देखिए बातों ही बातों में मैंने भी "काली डायन " सोया और खांड़ के खिलौनों का प्रचार-प्रसार कर दिया ,है ना !!!!!!!!!!!! हां आज 09 सितम्बर को जब मैं अपडेट कर रही हूं तब देखा कि इसका विडिओ यू ट्यूब पर डाला गया है। ये भी एक ऐसा स्थान है जहां से नए ट्रेंड्स पता चलते रहते हैं मानव समाज के।

              तो आपने देखा कि बच्चे अपना संसार स्वयं बना लेते हैं उनके सोचने का भी अपना अलग स्तर होता है समय के अनुसार उनके डरने के उपकरण भी बदलते रहते हैं साथ ही भागीरथी प्रयास क्या और कैसे होते हैं समझ पाए होंगे आपने। खाने के साथ में लिखने के लिए पैन वो भी मात्र 10 रूपए में है ना कमाल बात

बताइएगा जरूर।प्रतिक्रिया देने से लेखन और सटीक हो सकता है। 

धन्यवाद !




2 comments:

  1. तो अब जिसे स्कूल से डर लगे उसे गुरु-चेला खिलाया जायेगा?

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  2. जिसे स्कूल से डर लगे उसे "स्कूल " ही खिलाना पड़ेगा हाहाहाहा

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