पारिजात की छाँव
यहाँ बहुत कुछ खो कर भी, शेष को सम्हालने की जद्दोजहद करनी ही पड़ती है। नदी गहरी हो या उथली,जाना डूब कर ही है किनारे-किनारे जाने की कोई भी संभावना नहीं, जो हो गया या किसी ने कर दिया उसका दुःख भी ज्यादा नहीं मना सकते, वरना शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ने लगती है ,फिर हम क्या करने आए हैं और क्या कर रहे हैं इसमें अंतर करना मुश्किल हो जाएगा। इतने सब से जूझने की एक दवा तो है ही " प्रेम " मेरा मानना है सबके जीवन में,एक बार प्रेम -दस्तक जरूर होती है ,अभी नहीं हुई ? तो बस आती ही होगी ! सम्हालिएगा!
▼
Friday, 30 May 2025
Wednesday, 3 July 2024