पारिजात की छाँव

यहाँ बहुत कुछ खो कर भी, शेष को सम्हालने की जद्दोजहद करनी ही पड़ती है। नदी गहरी हो या उथली,जाना डूब कर ही है किनारे-किनारे जाने की कोई भी संभावना नहीं, जो हो गया या किसी ने कर दिया उसका दुःख भी ज्यादा नहीं मना सकते, वरना शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ने लगती है ,फिर हम क्या करने आए हैं और क्या कर रहे हैं इसमें अंतर करना मुश्किल हो जाएगा। इतने सब से जूझने की एक दवा तो है ही " प्रेम " मेरा मानना है सबके जीवन में,एक बार प्रेम -दस्तक जरूर होती है ,अभी नहीं हुई ? तो बस आती ही होगी ! सम्हालिएगा!

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Friday, 30 May 2025

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Wednesday, 3 July 2024

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Sunday, 29 October 2023

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लोकेष्णा (लोपामुद्रा )
17 दिसम्बर 2023 को बच्चों को समर्पित मेरी प्रथम पुस्तक "देवभूमि बाल काव्य सम्पदा" प्रकाशित हुई है। 2011 से लेखन से अचानक से जुड़ गई ,जिंदगी में थोड़ा सा पाने की आशा में कितना पाया कितना खोया इसका अब लेखा-जोखा रखना ही बंद कर दिया है। स्कूल से ले कर, दो एम. ए.और बी. एड. की डिग्री उत्तर प्रदेश से और दो एम. ए. की डिग्री यहाँ कुमाऊं यूनिवर्सिटी से। शिक्षण कार्य भी करती हूँ तो "छोटे बच्चों से लेकर कॉलेज स्टूडेंट्स" तक सबको काफी समझती हूँ। ज्यादातर तो अपनी पसंद का ही लिखती हूँ बाकी आर्टिकल ,कहानी कविताएं ,निबंध ,"साहित्यांबर" नाम से स्वयं का यूट्यूब चैनल भी। आप वहां मुक्तक-क्षणिकाओं के अतिरिक्त मेरी साहित्यिक-यात्राओं के विवरण भी देख-सुन सकते हैं। यूं तो ये ब्लॉग मेरे बड़े भतीजे शिवम,जो मेरा सबसे बड़ा हितैसी और मित्र है (जो अब इस दुनिया में नहीं है ) ने 2011 में बनाया था कि मैं अपनी खुद की कोई अलग पहचान बनाऊं पर 2014 फ़रवरी के हादसे के बाद मुझमें 99% वो रह गया शेष 01% और लोग ,बस यही मेरी पहचान है। अब जा कर मैं इस ब्लॉग को सुचारु रूप से शुरू कर पा रही हूँ। उसी को लेकर ब्लॉग का नाम मैंने बदल कर " पारिजात की छाँव " रखा पारिजात ही एक ऐसा फूल है जो बहुत कम समय के लिए खिलता और रहता है ,पर सुगंध उसकी बहुत दूर और देर तक रहती है।
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