Tuesday, 21 September 2021

कम समय, सुलभ प्रयत्नों से प्रसिद्धि पाने के मोहपाश में कारागार को जाने वाला एक और रास्ता -सॉल्वर गैंग


  💁 यहां आप इनदिनों नीट की प्रवेश परीक्षा के कारण अधिक चर्चा में आया एक वाक्य "सॉल्वर गैंग " से संबंधित मानसिकता को जानेंगे। ये मानसिकता क्या ,क्यों,कैसे,कितना ,कहां से होते हुए किसी को भी कारागार के अंदर पंहुचा सकती है और ना जाने कितने ही अच्छे -भले जीवन को ध्वस्त -छिन्न-भिन्न कर देती है।

         पहले समझते हैं ये सॉल्वर गैंग होता क्या है? हमारे आपके सभी के जीवन में दैनिक कार्यों के अवरोधों के अतिरिक्त कुछ ऐसे अवरोध भी आते रहते हैं जिनका निदान करने के लिए हमें कई अन्य लोगों या युक्तियों का सहारा लेना पड़ता है। अधिकतर जब हमसे येन-केन -प्रकारेण अपनी समस्याएं सुलझाई नहीं जा सकतीं तब हम भगवान की शरण में जाते हैं और आशा करने लगते हैं कि सब ठीक हो जाएगा। तो भगवान के अतिरिक्त जो हमारी इन समस्याओं को सुलझा दे यही समूह आजकल की भाषा में -सॉल्वर गैंग (समूह ) कहा जा सकता है।

          जहां कर्म और क्रिया होगी वहां समस्या भी स्वतः होगी ये कोई जादू नहीं सत्यता है। इस लोक से लेकर उस लोक तक समस्याएं हर जगह होतीं रहीं हैं।

           सभी जानते हैं कि भगवान शंकर आशुतोष हैं अर्थात बहुत थोड़े से संतुष्ट -प्रसन्न होने वाले ,तो वो कभी भष्मासुर से प्रसन्न हो जाते हैं और देवलोक के लिए समस्या खड़ी कर देते हैं अंत में सभी देवी-देवताओं के विचार-विमर्श के बाद भगवान विष्णु को  मोहिनी रूप धारण कर भष्मासुर को भष्म करना पड़ता है।प्रस्तुत है ये कहानी -

           भस्मासुर ऐसा राक्षस था जिसे शिवजी का वरदान था कि वो जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। भस्मासुर ने इस शक्ति का गलत प्रयोग शुरू किया और स्वयं शिव जी को भस्म करने चला ताकि वो पार्वती जी को प्राप्त कर सके। विष्णु जी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया, भस्मासुर को आकर्षित किया और नृत्य के लिए प्रेरित किया। नृत्य करते समय भस्मासुर विष्णु जी की ही तरह नृत्य करने लगा और उचित अवसर देखकर विष्णु जी ने अपने सिर पर हाथ रखा, जिसका अनुसरण शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने भी किया और भस्मासुर अपने ही वरदान से भस्म हो गया। तो देवलोक में जब भी ऐसा कुछ होता है तो देवता नारद जी के द्वारा सुझाए गए के अनुसार ,शिवजी या विष्णु जी के पास ही पहुंचते हैं। तो इनको देवलोक का समस्या समूह या सॉल्वर गेंग कह सकते हैं। पर ये सभी की भलाई के लिए किया जाता है।

   

भष्मासुर और मोहिनी रूप 



       
उर्मिला और निद्रा 



              ऐसे ही रामायण में जब श्रीराम 14 वर्ष के वनवास जाने लगे तब लक्ष्मण बिना सोए अपने भाई -भाभी की सेवा कर सकें इसलिए उनकी पत्नी को निद्रा देवी ने लक्ष्मण के भाग की भी नींद दे दी जिससे उर्मिला 14 वर्ष तक सोती रहीं और लक्ष्मण ने बिना किसी बाधा के अपना कार्य पूरा किया। ये समस्या को सुलझाने का एक और उदाहरण हुआ।

           जब मैं नवोदय विद्यालय में थी तब मैंने देखा कि वहां के ज्यादातर छात्र -छात्राएं एकदम परिवार के जैसे जुड़े थे एकदूसरे से काफी एकता थी सब में। परीक्षा के समय उनको CBSC के नियमानुसार छोटे-बड़े और अलग विषय के अनुसार बिठाया जाता ,उतने पर भी वो एक-दूसरे की हर संभव मदद करने का प्रयास शिक्षक की नजरो से बचा कर करते जैसे-

👉कभी कोई पास बैठे की कॉपी ही बदल लेता और उसकी समस्या सुलझा देता

👉कभी चुपके से बता देते, बड़ों से बड़े ही प्यार से कहते -भैया -दीदी प्लीज बता दो ना उधर से आवाज आती ,मैम-सर देख लेंगे डांट पड़ेगी 

👉कभी-कभी तो ये भी देखा गया कि 6th-7th के बच्चे 11th -12th वालों के भी छोटे-मोटे प्रश्न हल कर देते थे

       ये सब क्या था? इनसब का आपस का लगाव था। मात्र इतना स्वार्थ कि सामने वाले के नंबर कहीं, ज्यादा कम ना आएं जिससे वो परिवार या विद्यालय से डांट खाए। ये समस्या समाधान का एक और उदहारण है ,जिसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कहीं ना कहीं शिक्षक -शिक्षिकाएं भी सम्मिलित होती है सहानुभूति और प्रेम से।         

       😊आपलोगों को 2003 में बनी एक हिंदी फिल्म याद होगी,मुन्ना भाई एम बी बी एस, इसकी  कहानी में -मुन्नाभाई एक डॉक्टर को धमकी देकर अपनी जगह प्रवेश परिक्षा में बिठा देता है वो नकली मुन्नाभाई बन कर प्रवेश परिक्षा देता है और असल मुन्नाभाई को एम बी बी एस में प्रवेश दिला देता है।

 



मुन्ना भाई 





थ्री इडिएट्स 




      😊एक और याद दिलाने की जरूरत नहीं शायद ,3 इडियट्स जो 2009 में आई थी उसमें आमिर खान किसी और के नाम से पढ़ कर डिग्री ले जाता है। फरहान, राजू और चतुर शिमला पहुँचते हैं और उस घर में जाते हैं जहां रैंचो रहता है। वहां पर, वे एक और युवक ( जावेद जाफरी) से मिल कर चौंक जाते हैं घर में रहने वाला कहता है कि उसका नाम रणछोड़दास चांचड़ उर्फ रैंचो है असली रैंचो है।

         और जो कॉलेज में उनके साथ था वह छोटा रैंचो था। वह उनके माली का पुत्र था और उसके माता-पिता की मृत्यु के बाद उसके पिता ने उसे गोद लिया था। उनके पिता ने उन्हें कॉलेज में अपने बेटे के रूप में प्रवेश दिला कर रैंचो के नाम से डिग्री लाने के लिए कहा। माली के बेटे को पढ़ने का शौक था और रैंचो को डिग्री चाहिए थी हो गया समस्या का समाधान इसमें रैंचो के पिता खुद माली का बेटा ,युक्ति बताने वाला और रैंचो सम्मिलित हुए जिन्होंने संगठित रूप से एक समूह बना कर कार्य किया और अपने कार्य में सफल हुए  ये समाज और शिक्षा -विभाग से एक छलावा था या कहें कि गलत कार्य पूरी कागजी कार्यवाही के साथ किए गए

       फिल्मों में स्टंट करने वाले लोग पैसों के लिए अपनी जान पर भले खेलते हैं पर कोई अपराध नहीं करते। इन दोनों फिल्मों के जो नकारात्मक पक्ष हैं ये आजकल समाज में कुछ इस तरह से रच-बस गए हैं कि इनको ,साहीवाल और गिरी नस्ल की गाय के दूध में मिले गंदे पानी और हानिकारक पदार्थों जैसा ही माना जा सकता है जो समाज को रोगग्रस्त करता जा रहा है और समाज उसे पीठ पर सवार वेताल की भांति झेलता चला जा रहा है। साल 2020 में जब कोरोना आया तो कुछ समय को लगा कि जैसे अपराधी प्रवृत्तियां कम हो जाएंगी पर अब तो लगता है जैसे इनका मुंह सुरसा से भी बड़ा होता जा रहा है जो सारी संवेदनशीलता और आदर्शों को निगलने को तत्पर बैठी है।

        मैंने UGC NET की परीक्षाओं में देखा है कि कई अभ्यर्थी ऐसे होते हैं जिनके,साथ उनके आगे-पीछे या दाएं-बाएं उनके कोई रिस्तेदार ,बहन-भाई ,पति-पत्नी, मित्र,साथ में परीक्षा दे रहे होते थे और पहला पेपर जो टीचिंग एप्टीट्यूट और रीजनिंग आदि का होता था पूरा का पूरा हल करा देते थे उनका उद्देश्य ही दूसरे वाले को परीक्षा अपने बल पर पास कराने का होता था। प्रवेश फॉर्म में कैसी और कितनी सांठ-गांठ करते होंगे आप अंदाजे लगते रहिए

      पीएचडी की प्रवेश परीक्षा में मैंने एक टीचर को ही परीक्षा -कक्ष में ऐसे बैग से आराम से नोट्स निकाल कर परीक्षा देते देखा है जैसे एक बार कभी सपुस्तक प्रणाली परीक्षा हुई थी। ये हाल उन शिक्षकों के हैं जो आने वाली पीढ़ी को शिक्षित करने वाले हैं। ये क्या और कैसी शिक्षा देंगे आपको भी इस पर मनन करना चाहिए

        सहानुभूति -मदद ,अपनेपन का स्वार्थ आदि के बाद जब यही सब जबरदस्ती और धोखाधड़ी में बदल जाता है तो ऐसे ही कुछ अभ्यर्थी और साथ वाले अपराध की ओर बढ़ते हुए अपराधी बन जाते हैं। जिनकी एक अलग मानसिक -स्थिति होती है और अपना व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अभ्यर्थी और शिक्षक अपराधी बन बैठते हैं।

         💁नीट परीक्षा में दूसरे अभ्यर्थी की जगह पर परीक्षा दे रही सॉल्वर गैंग की सदस्य बीएचयू की और पटना निवासी पीके, लखनऊ स्थित केजीएमयू के एक चिकित्सक आदि सम्मिलित हैं।

         💁राजस्थान में नीट, जेईई एवं कॉमेड परीक्षा में फर्जी विद्यार्थियों को बैठाकर धोखाधड़ी करने के समाचार सभी ने पढ़े होंगे।

         उक्त प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कमजोर लड़के -लड़कियों से संपर्क कर गैंग के लोग तीक्ष्ण बुद्धि (तेज दिमाग ) वाले लड़के -लड़कियों से कमजोर के नाम से परीक्षा दिलाकर उन्हें पास कराने की जिम्मेदारी लेते हैं जिसमें परीक्षार्थी से लाखों रुपये अग्रिम धनराशि ,परीक्षा वाले दिन शेष रुपए तथा परीक्षा के पश्चात कॉलेज चयन के नाम पर फिर लाखों रुपए वसूलते हैं। इस तरह वे प्रति परीक्षार्थी लगभग आधा करोड़ आज के समय में  वसूल लेते हैं।

        सॉल्वर गैंग मेट्रो में ही नहीं,छोटे शहरों में भी पनप रहा है सॉल्वर गैंग का मायाजाल यूपी से लेकर दिल्ली तक फैला हुआ है, लेकिन बीते कुछ माह में यूपी में एक नया चलन सामने आया है। ये लोग कौशांबी, प्रतापगढ़, कन्नौज, देवरिया और उन्नाव जैसे छोटे जिलों में अपना नेटवर्क खड़ा कर रहे हैं, छोटे शहरों में नौकरी के लिए तैयारी कर रहे बेरोजगार आसानी से इनका निशाना बन जाते हैं। कुछ लाख रुपये में उन्हें परीक्षा पास कराने का दावा करके लुभा रहे हैं। इस नेटवर्क में बड़े कोचिंग संचालक और फोटो स्टूडियो संचालक शामिल होते हैं। ये स्थानीय लोगों को परीक्षा पास कराने की बात कहकर अपने साथ जोड़ लेते हैं और अपने लोगों के जरिए अभ्यर्थियों को सॉल्वर उपलब्ध कराते हैं।

          जबकि नीट परीक्षा को रामवाण माना गया है पुरानी परीक्षाओं की तुलना में इसे एकरूपता लाने वाली परीक्षा कहा गया जो 2012-13 में मनमोहन जी की सरकार के समय आई और कुछ समय बाद बंद हो गई। काफी वाद-विवाद के बाद 2017 से पुनः आरम्भ हुई। एक ओर तो इस परीक्षा के कारण आत्महत्याएं हो रहीं है वहीं दूसरी ओर सॉल्वर गेंग जैसी अपराधी मानसिकता इन्ही परीक्षार्थियों में से सामने रही है।

           हमारे मस्तिष्क के कामकाज पर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों का प्रभाव वह केंद्रीय प्रश्न है जिससे फोरेंसिक या आपराधिक मनोवैज्ञानिक निपटते हैं, क्योंकि यह हमारे सभी कार्यों का बीज है। मनोविज्ञान का मुख्य सवाल यह है कि कौन सा मरीज एक अपराधी बन जाता है?, या कौन अपराधी एक रोगी हो जाता है? इन मनोचिकित्सकों द्वारा पूछा गया एक और मुख्य प्रश्न है, पहले क्या आया, अपराध या मानसिक विकार? मनोवैज्ञानिक किसी व्यक्ति विशेष की अपराध करने की संभावना (प्रोफाइलिंग) का निर्धारण करने के लिए आनुवंशिकी के साथ-साथ पर्यावरणीय कारकों को भी देखते हैं।

  1. क्या अब कोई मानसिक विकार मौजूद है? क्या यह अपराध के समय मौजूद था?
  2. अपराध के लिए अपराधी की जिम्मेदारी का स्तर क्या है?
  3. फिर से अपराध करने का जोखिम क्या है और कौन से जोखिम कारक शामिल हैं?
  4. क्या दोबारा अपराध करने के जोखिम को कम करने के लिए उपचार संभव है?

ये वो प्रश्न हैं जिनके उत्तर हमसब को भी आने चाहिए।

    

सॉल्वर गैंग

      ये कोई एक सॉल्वर गैंग नहीं है ,एक लम्बी लिस्ट है इसकी -प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (टीजीटी) ,जेल वार्डर, फायरमैन और घुड़सवार पुलिस के पदों पर भर्ती , नीट की प्रवेश परीक्षा ,आईटी एक्सपर्ट ऑफलाइन परीक्षा में सॉल्वर बैठाने के साथ ही विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की ऑनलाइन परीक्षा में भी पास कराने का ठेका लेते हैं। कोई भी परीक्षा जिसमे अभ्यर्थी अपना धन लगा कर अनैतिक रूप से परीक्षा पास करने का इक्षुक हो।

       💁आपने,लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला और निद्रा के बारे में पढ़ा , मोहिनी रूप और भष्मासुर को जाना ,आवासीय विद्यालय का अपनापन देखा। मुन्ना भाई एम बी बी एस और 3 इडियट्स की यादें ताजा हो गई होंगी। UGC NET आदि जैसी उच्च स्तरीय परीक्षाओं के कुछ नकारात्मक पक्ष भी देखे।

 लेखन तब तक सार्थक नहीं जब तक कि पढ़ने वाले उसपर प्रतिक्रिया ना दें। मुझे भी सदैव प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है। 

5 comments:

  1. ये तो हर जगह होता है अलग अलग तरीकों से। सिर्फ ऑफलाइन ही क्यों, ऑनलाइन एग्जाम में भी ये देखा जा रहा हैं।
    कुछ ऑनलाइन एग्जाम में ऐसे सैटिंग करा जाता है की आपको बस कंप्यूटर के सामने बैठना है, बाकी आपका कंप्यूटर कोई और कही और जगह बैठ कर ऑपरेट करता है और पूरी एग्जाम पूरी कर के टॉप करता हो।

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    1. ये सभी जानते हैं कि हर अपराध के ढेरों विकल्प होते हैं ,पर मात्र धोखे से ही तो दुनिया नहीं चलती

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  3. आदरणीय दीदी अब्दुल कलाम के शिक्षक (शिवशुब्रमयं अयर) ने एक बार उनसे कहा था कि"अब्दुल जब हम समाज मे एक सकारात्मक बदलाव चाहते हैं तो हमें शुरुआत अपने आप से करनी चाहिए" आपका लेख इस कथन की सत्यता का एक जीवंत उदाहरण है। मैं हमेशा अपने छात्रों को ये वाक्य जरूर बताता हूँ और इसका अनुसरण करने पर जोर देता हूं।।

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  4. हम्म,कोई भी समस्या या अनचाही चीजें हों ,तो हमें अपने स्तर से उन्हें सम्हालने की कोशिश जरूर करनी चाहिए ,बजाए दूसरों की कमियां निकालने के । बहुत अच्छा उदाहरण दिया अतुल तुमने 🤗

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