Thursday 18 November 2021

थाहरे साहित्य का युवा -वर्ग पर प्रभाव

    🔎साहित्य जिसमें सबका हित हो। अर्थात साहित्य को अनुकरणीय होना चाहिए। ऐसा नहीं कि अपने भाव व्यक्त ना किए जाएं परन्तु वो भाव समाज को एक नई और स्वस्थ दिशा देने वाले हों इसी में साहित्य की शाश्वतता है।

स्वान्त: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा,

भाषा निबंध यति मञ्जुलमा तनोति।।

         श्रीरामचरितमानस की रचना भले ही तुलसीदास ने स्वांत: सुख के लिए की हो परन्तु तुलसी का वह स्वांत: सुख विश्व साहित्य तथा विश्व जन के स्वांत: सुख के रूप में देखा जाता है। रामचरित मानस ऐसी लोकग्राह्य कृति है जिसमें समाज के लगभग हर एक वर्ग के रेखांकन की सूक्ष्मता को अत्यंत कुशल एवं गंभीर दृष्टि से देखा जा सकता है। साहित्य की कोई भी विधा हो वो समाज के किसी ना किसी वर्ग पर प्रभाव डालती ही है इस बात को हम नकार नहीं सकते। इस शोध में इसी तथ्य का विश्लेषण किया गया है।

           इसी कड़ी में पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय मैत्रेयी कॉलेज के छात्र-छात्राओं के व्हाट्सएप्प ग्रुप में स्टेटस पर एक कविता वाइरल हुई जिसके रचनाकार नवीन रांगियाल इंदौर के रहने वाले हैं। जो नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक और पत्रकार हैं-

कविता का नाम - सबसे कोमल चीजें

👉घास ,फूल ,तिनके ,बच्चे ,कागज,मन

दुनियां में सबसे कोमल चीजें

सबसे पहले कुचली जातीं हैं

इसलिए आजकल

कविताएं भी नहीं लिखी जातीं हैं !

नवीन रांगियाल 



कोमल चीजें 


           इनका समस्त पद्य साहित्य हिन्दवी ब्लॉग पर उपलब्ध है। यह कविता उन्होंने ने आज से लगभग 15 वर्ष पहले लिखी होगी और भी कई कविताएं है जिनमें रचनाकर समाज की ओर से स्वयं के लिए अत्यधिक असंतुष्ट दिखाई देते हैं। रचनाकार का असंतुष्ट होना कुछ नया नहीं है पर किन बातों पर असंतुष्ट है ये विचारणीय है।

        👉यहां घास और तिनके को अलग करके भी देखा जाए तो फूल,बच्चे और मन सबसे पहले कुचले जाते हैं तो फिर शेष क्या रह जाता है ? हो सकता है यही पंक्तियां यदि किसी महिला ने लिखी होतीं तो वह यहां एक शब्द और जोड़ देती वो होता "लड़कियां " और ये पंक्तियां और ज्यादा रूखी -कठिन हो जाती। जितना भी किशोरवय या बच्चे इस तरह के साहित्य को पढ़ेंगे उनकी भावनाएं बिना सोचे-समझे एक धारणा बना लेंगी जो किसी के लिए भी उचित नहीं होगा। जबकि ये भी सभी मानते होंगे कि फूल और मन पर तो ज्यादातर सारा का सारा काव्य साहित्य टिका हुआ है। बच्चों के साहित्य की भी कहीं कमी नहीं है बच्चों पर भी कविताएं पहले भी लिखी गई हैं आज भी लिखी जा रहीं हैं।

         किसी परिस्थिति विशेष को लेकर किसी पर भी कविता लिखना एक अच्छा और सकारात्मक उद्देश्य है। जिसके एक दो उदहारण प्रस्तुत हैं -

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ कवि राजेश जोशी से सभी परिचित हैं। उनकी एक कविता NCERT की 9th कक्षा की हिंदी पुस्तक में है जिसे उन्होंने स्वयं अपने समय की सबसे भयानक पंक्ति के रूप में स्वीकारा है।

·      👉कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं

सुबह सुबह

बच्चे काम पर जा रहे हैं

हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह

भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना

लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह

काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?

यहां एक विशेष वर्ग के बच्चे बाल-मजदूरी को अभिशप्त हैं उनको इंगित करके ये कविता लिखी गई है।

  दूसरा उदहारण है -नरेश सक्सेना जो एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं । उन्होंने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य के रूप में कार्य किया ।वह केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय में संयुक्त सचिव और इस पोस्टिंग के बाद, वे 1989 और 1992 के बीच वानिकी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के लिए ऑक्सफोर्ड गए। बहुत लम्बी सूची है उनके कार्यों की। उन्होंने जो बच्चों  के लिए आज से लगभग 25-30- वर्ष पहले अनुभव किया वो प्रस्तुत है

👉कुछ बच्चे बहुत अच्छे होते हैं

वे गेंद और ग़ुब्बारे नहीं माँगते

मिठाई नहीं माँगते ज़िद नहीं करते

और मचलते तो हैं ही नहीं

-------------------------

उन्हें ले आते हैं घर

अक्सर

तीस रुपए महीने और खाने पर।

    इन्होने भी कुछ बच्चों की बात की है। मानव प्रवृत्ति है कि जब वो किशोर से युवा हो रहा होता है तब उसको ये भान होने लगता है कि यहां जितना कुछ अनचाहा या नकारात्मक है वो  वह समाप्त कर देगा परन्तु जैसे-जैसे वो वास्तविकता से परिचित होता है उसे भी हर उस बात के,यदि और लेकिन समझ में आने लगते हैं और वो इन सब बातों के सामानांतर चलने लगता है।

स्व. गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा' जो उत्तराखंड के सशक्त गीतकार रहे हैं। उनके बच्चों के लिए कुछ ऐसे भाव रहे हैं –

👉जहाँ न बस्ता कंधा तोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा

जहाँ न पटरी माथा फोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा

जहाँ न अक्षर कान उखाड़ें, ऐसा हो स्कूल हमारा

जहाँ न भाषा जख़्म उभारे, ऐसा हो स्कूल हमारा

--------------------------------------------

इनके अतिरिक्त-

डॉ शशि गोयल जिनकी -पुस्तक:छोटा सा दाना (कविता संग्रह) है।

बचपन की पचपन कविताएँ -अभिरंजन कुमार

बच्चों की 101 कविताएँ / प्रकाश मनु , आदि बाल कविताओं के लिए जाने जाते हैं।

वरिष्ठ लेखक एवं कवि प्रबोध गोविल द्वारा कॉरोनकाल में रचित कुछ पंक्तियां-

👉सारे में सन्नाटा दिखता

ऐरोप्लेन ना उड़ते

छोड़ पढ़ाई घर बैठे हैं

बच्चे पढ़ते-पढ़ते

-------------------

इनके अतिरिक्त एक उदहारण उत्तराखंड हल्द्वानी के युवा कवि ,हिंदी स्नातकोत्तर रोहित केसरवानी हैं जो बच्चों के लिए सकारात्मक कविताएं भी लिख रहे हैं

शीर्षक - गोलू

👉गोलू   दिखता   गोल  मटोल।

पढ़ने  में  करता  टाल  मटोल।

घर   में    कूदा-फांदी   करता।

कभी इधर कभी उधर उछलता।

इस सब में ,मैं अपना एक ताजा अनुभव जोड़ती हूं -

नोएडा सैक्टर ५१ पर 

पैन बेचती लड़की 

जिस-तिस के बैग में 

जबरन पैन डालकर 

सहानुभूति बटोरती, 

दूसरों को अपराधी सा 

अनुभव कराती लड़की 

पीछे-पीछे घूमती 

रोटी का हवाला देती लड़की 

काम देने का कहने पर 

छिटक कर दूर भागती लड़की 

फोटो खिंचाने से बचती 

पान मसाला चबाती लड़की 

               -लोकेष्णा मिश्रा


निष्कर्ष -

              तो हम ये कह सकते हैं कि वर्तमान में जितना भी काव्य साहित्य रचा जा रहा है वह पूरा का पूरा सार्थक एवं सकारात्मक नहीं है। कहीं ना कहीं आज का कुछ युवा वर्ग मात्र आपत्ति जताना ही अपना अधिकार समझाता है और उसको पढ़ने और जानने वाले बिना मंथन किए उसका अनुगमन करने लगते हैं। जो -जैसा मन में आया उसे लिख देने भर को कविता समझता है वो ये भूल जाना चाहता है कि कोई भी रचना तब तक सार्थक नहीं होती जब तक वह परिष्कृत करके गढ़ी नहीं जाती। एक साहित्यकार के ऊपर पूरे समाज की जिम्मेदारी होती है क्योंकि उसे विद्यार्थी, डॉक्टर,इंजीनियर, शिक्षक, व्यापारी, सैनिक,प्रशासनिक अधिकारी आदि-आदि सभी पढ़ते हैं। स्वस्थ और सबल समाज के लिए परमावश्यक है कि उसे उतना ही स्वस्थ और स्वच्छ साहित्य पढ़ने को मिले। 

💁 पढ़ कर प्रतिक्रिया अवश्य दें। पाठकों की प्रतिक्रिया के बिना लेख निर्जीव ही रहता है। 



  

18 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ नवंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी धन्यवाद !आपका भी आभार ,लेख साझा करने के लिए।

      Delete
  2. You talked about Black, Then White. But Life is not Black & White. It's in Grey. This is the fact that bo one even want to understand.

    ReplyDelete
    Replies
    1. काला जब तक अंधेरे में रहे ,चल सकता है पर यही काला जब कोई दिन के उजाले में फैलाएगा तो उसे दूर या कम करने का उपाय तो करना ही चाहिए। जहां भी काला या सफ़ेद है उसके बारे में बताया जाएगा तभी तो वो ग्रे (धूसर ) रंग या सोच तक आ पाएगा। सभी जगह ना ही नितांत असंतुलन है ना ही संतुलन, पर जो हानिकारक है उसे कम हानिकारक करने की कोशिश तो करनी ही चाहिए। "विष " की थोड़ी ही मात्रा बहुतों को नष्ट कर सकती है।

      Delete
  3. गहन शोध परक भाव लिए गहन आलेख।
    सार्थक उपयोगी।

    ReplyDelete
  4. उत्कृष्ट साहित्य
    सभी के लिए
    आभार..
    सादर..

    ReplyDelete
  5. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया

    ReplyDelete
  6. Replies
    1. आपका भी आभार !अदृश्य पाठक और सहयोगी

      Delete
  7. सुन्दर लेखन

    ReplyDelete
  8. सकारात्मक एवं सार्थक तथा सुखद विचार प्रदान करने वाले इस लेख हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई दीदी।

    ReplyDelete