Thursday, 24 September 2020

#एक जीवन पारिजात सा -पल-पल सुगन्धित कर रहा !!!!!!!!!!!!









पारिजात के बीज 



पारिजात के फूल 








ये लेख ,मेरे ब्लॉग "पारिजात की छांव " का पहला लेख है चाह  रही थी कि फूलों सा हल्का रहे ,कोशिश की है कैसी रही ,बताइएगा जरूर | मेरा और पारिजात का क्या और कैसा संबंध है ये भी बताया है मैंने इसमें, इसका नाम "पारिजात की छांव" ही क्यों रखा मैंने। इस सब का विवरण भी दिया है। पारिजात कैसा होता है और उसके जैसे स्वभाव के लोग कैसे होते हैं उसकी भी चर्चा की है इसमें मैंने।

     👉ऐसे तो बचपन से ही मैं ,प्राकृतिक वातावरण में रहती आई हूँ हमारे घर के ठीक सामने ही डिग्री कॉलेज था जहां हमारे सारे खेल होते थे ,वहां का माली नेपाली था - जिसे हम " काँचा " कहते थे काँचा का अर्थ जानने के लिए आप ,हरे रामा हरे कृष्णा फिल्म ,का देवानंद और मुमताज पर फिल्माया गया गाना -काँची रे काँची रे ..................से समझ सकते हैं।

कांची-कांचा 





        जब हम ज्यादा शैतानियाँ देते थे तो डांट खाते थे नहीं तो मस्त हो कर खेलते थे ,वहां हमारा एकछत्र राज चलता था। एक सख्त-संजीदा और कर्तव्य परायण शिक्षक की बेटी जो हूं। वहां के रंगीन चौक की रंगत अबतक मेरे दिल-दिमाग की आँखों से नहीं गई है कांचा जब तक सारे कमरों का ताला ना लगा लेता तब तक हम एक के बाद दूसरे कमरे में और दूसरे से तीसरे में अपनी सल्तनत बसाए बैठे होते थे। तो बहुत तरह के फूल पौधे देखे हैं ,हर पौधे -फूल को छूने -सूंघने और चख के देखने की,आज किसी नए स्वाद वाली चॉकलेट को खाने की तीव्र इच्छा जैसी रहती थी। एक घास जो कुछ -कुछ गाजर के पौधे जैसी होती थी उसको मिर्च का पौधा कहते थे बहुत ही तीखा और उतनी ही तीखी उसकी गंध थी। गुलमोहर के फूल की खट्टी -मीठी कलियाँ ,अमरुद की नरम पत्तियां अभी भी याद हैं मुझे ,ज्यादातर मम्मी हमलोगो को रविवार को हरी मेंहदी की पत्तियां लेन को भेज देतीं और हम लड़कियां बंद गेट पर चढ़ कर कॉलेज के परिसर में पहुंच जाते और ढेर सारी पत्तियां तोड़ लाते फिर मम्मी समय मिलते ही उन्हें सिल पर पीस कर अपने हाथ पैरों में लगाती साथ ही मेरी भी हथेलियां और एड़ियां रंग देतीं और जाने क्या -क्या !

            उसके कुछ सालों बाद हम दूसरे घर में सिफ्ट हुये  वहां भी और पेड़-पौधों के साथ ही " पारिजात " का पेड़ भी था , जिसकी सुगंध  तो हमारे घर तक नहीं आती थी ,पर जब मैने पहली बार -सितंबर से अक्टूबर में खिलने वाले इन फूलों को देखा तो लगा ! " जैसे खुद पेड़ ने अपने चारों ओर ,किसी कोमल मन के लिये सफेद-नारंगी सुगंधित चादर बिछा रखी हो " , फिर और भी अच्छा लगा जब 8th - 12th तक जिस स्कूल में मैने पढ़ा ,वहां भी पारिजात का पेड़ था ! जिसका मैने 12th तक खूब आनन्द उठाया। मेरी सहपाठी मुझे स्कूल के समय से थोड़ा पहले ही जबरदस्ती सिर्फ इसलिए ले जाती कि एक बार पारिजात के नीचे वो खड़ी होगी और एक बार मैं और बारी -बारी से एकदूसरे के ऊपर फूल गिराएंगे पेड़ हिलाकर। 

  वो मुझसे थोड़ी काम संजीदा थी। सच उसमें कैसा सुख था आज भी शब्दों में बताना बड़ा ही कठिन है। 

       आप सोच रहे होंगे मैं आपको " पारिजात" की कहानी क्यों सुना रही हूँ ? यहाँ भी हमारे घर से सटा हुआ ही एक परिजात का पेड़  है,जिसकी सुगंध  हमारे घर में खूब आई रहती है। हमारे यहाँ के बगीचे में भी दो पेड़ है पर बहुत ज्यादा बड़े नहीं हैं ,हाँ एक दिन में एक अंजुरी भर फूल निकल ही आते हैं आज भी।अब काफी बड़ा हो गया है पेड़ एक साल में और फूल भी आना शुरू हो गए हैं।

           कितना छोटा जीवन होता है इन फूलों का ? 2-3 महीने और खिलने के एक-दो दिन बाद पेड़ से खुद ही बिना मुरझाये झड़ जाते हैं इसकी एक अनोखी बात ये है कि हर टहनी में से जगह-जगह से अंकुर फूटते हैं और फूल खिलते हैं।पेड़ की डालियों को खुद ही छोड़ देते हैं ,और आप-पास का सारा वातावरण हरसिंगार की सुगंध में डुबो देते हैं।जाने कैसे और किसने ये भ्रम फैलाया है कि इसपर बीज नहीं आते अपने समय के अनुसार इसपर भी ढेरों फलियां आतीं हैं। ये आप तस्वीरों में देख सकते हैं। कैसे इनके एक-एक फूल झरते हैं ये भी आप ऊपर दिए छोटे से विडिओ में अंत तक देख सकते हैं। 

           होने को पारिजात को लेकर हमारे धर्मग्रंथो में कई कहानियां हैं, जिनसे हमें इसके कई और रहस्य पता चलते हैं। स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक पर पारिजात वृक्ष को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है|आयुर्वेद में पारिजात को हरसिंगार कहा जाता है |इसका वानस्पतिक नामनिक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस है और अंग्रेजी में इसे नाइट जैस्मीन कहते हैं।बताया जाता है कि पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी और यह देवताओं को मिला था, स्वर्ग में इंद्र ने अपनी वाटिका में इसे रोप दिया था. पौराणिक मान्यता अनुसार नरकासुर के वध के पश्चात इन्द्र ने श्रीकृष्ण को पारिजात का पुष्प भेंट किया, जो उन्होंने देवी रुक्मिणी को दे दिया. देवी सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था,लेकिन  पारिजात पुष्प के प्रभाव से देवी रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गईं, जिसे जानकर सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लाने की जिद करने लगीं। इसके बाद श्रीकृष्ण को पारिजात धरती पर लाना पड़। 

          पारिजात के फूलों को खासतौर पर लक्ष्मी पूजन के लिए उपयोग में लाया जाता है लेकिन केवल उन्हीं फूलों का उपयोग किया जाता है, जो अपने आप पेड़ से टूटकर नीचे गिर जाते हैं। दुनिया भर में इसकी सिर्फ पांच प्रजातियां पाई जाती हैं।  पारिजात का फूल पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है। इसे प्राजक्ता, परिजात, हरसिंगार, शेफालिका, शेफाली, शिउली भी कहा जाता है. उर्दू में गुलज़ाफ़री कहते है।

 

      👉 इस पेड़ की छाँव में बैठने से पलभर में थकान दूर हो जाती है | इस बात को मैंने स्वयं अनुभव किया है। इस वृक्ष के बारे में कई भ्रांतियां भी हैं जिनमें से एक ये है कि इसमें बीज नहीं आते जबकि इसका भी साक्षात प्रमाण हमारे घर के पारिजात में है कि उसमें बीज आते हैं हर साल। 

हमारे घर के पारिजात                     घर के पारिजात 





      कुछ ऐसा ही चरित्र मेरे जीवन में आया " शिवम" (मेरे सबसे बड़े भतीजे के रूप में) ,जो मेरे शेष जीवन को अपनी परिजाती सुगंध से सराबोर कर गया ! उसे इस दुनिया से विदा लिए फरवरी 2021 में 07 साल हो गए और मैं उसी पारिजात की छाँव में सांसे ले रही हूं

      इस लेख में पारिजात के विभिन्न गूण रहस्यों एवं भ्रांतियों के साथ ही बचपन के अटपटे कार्य ,मिर्ची वाली घास, झरते हुए फूल ,हरी मेंहदी,गुलमोहर की कलियों का स्वाद,रंगीन चौक ,पारिजात के विभिन्न समानार्थी,कांचा आदि की चर्चा की गई है।


 



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