Sunday, 29 October 2023

 अंगद के पैर की ख्याति 

एक बार महर्षि जमदग्नि की पत्नी देवी रेणुका सरोवर में स्नान के लिए गई,वहां राजा चित्ररथ को नौका विहार करते देख रेणुका के मन में विकार उत्पन्न हो गया,यह विकार देख ऋषि जमदग्नि को अत्यंत क्रोध आया। ऋषि जमदग्नि ने क्रोध वश अपने पुत्रों को माता रेणुका का वध करने का आदेश दिया,परन्तु मां से मोह के कारण एक भी पुत्र यह ना कर सका। इससे ऋषि का क्रोध और अधिक बढ़ गया और उन्होंने बुद्धि विवेक से मर जाने का शाप दिया।

इसके बाद जब उन्होंने रेणुका के वध का आदेश परशुराम को दिया। परशुराम जी ने पिता की आज्ञा का पालन किया इससे परशुराम के पिताजी उन पर प्रसन्न हुए और उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा। परशुराम जी ने उनसे तीन वरदान में पहला माता को फिर से जीवित करने का,दूसरा भाइयों की बुद्धि ठीक करने का और तीसरा स्वयं के दीर्घायु-अजेय होने का। पिता ने परशुराम को तीनों ही वरदान दिए, जिसके बाद परशुराम जी सदा के लिए अजेय और अमर हो गए।

                                                                     

                                                                      बालीपुत्र अंगद

                                    

ये एक उदहारण है कि प्राचीन काल से ही माता-पिता की आज्ञा कितनी महत्वपूर्ण है। उसमें अपना बुद्धि-विवेक या तर्क नगण्य रहा है। ऐसा ही एक उदहारण बालीपुत्र अंगद का आता है। ये प्रश्न आपके मन में भी सकता है कि जिन श्रीराम ने बाली का बध किया उन्ही श्रीराम का साथ अंगद ने क्यों दिया ? क्या अंगद डर गए थे श्रीराम और उनकी वानर सेना से ? ऐसे अनेकों प्रश्न हो सकते हैं। परन्तु आपको आश्चर्य होगा कि अंगद के मन-मस्तिष्क तक ये प्रश्न ही नहीं पाए क्योंकि स्वयं बाली ने प्राण त्यागने से पहले अपने पुत्र अंगद से कहा-

देशकालौ भजस्वाद्य क्षममाण: प्रियाप्रिये।

सुखदु: खसह: काले सुग्रीववशगो भव।।

इस श्लोक में बालीने अगंद को ज्ञान की तीन बातें बताई है जो इस प्रकार हैं,जिसमें सबसे पहला है कि देश की परिस्थिति को समझो और देश काल को समझो

👩यदि  हमारे सामने कोई अहंकारी व्यक्ति जाए तो हमें तर्कों के साथ उसके सवालों का सटीक जवाब देना चाहिए। जब हम तर्कों के साथ सटीक जवाब देते हैं तो अहंकारी व्यक्ति हमारे सामने कुछ बोल नहीं पाता है।

👩इतनी बात करने के बाद अंगद को बाली ने कहा कि ये सभी बातों का ध्यान रखते हुए तुम सुग्रीव के साथ रहो और भगवान श्रीराम की सेवा करो और उनका साथ दो।

👩दूसरी बात में बाली का कहना था कि तुमको किसी के साथ कब, कहाँ और कैसा व्यवहार करना है उस बात का सही निर्णय लेना चाहिये।

👩तीसरी बात में यह बताया गया है कि पसंद-नापसंद, सुख-दुःख को सहन करना चाहिए और अपने में क्षमाभाव रखना चाहिए साथ ही अपने जीवन को दया और करुना के साथ व्यतीत करना चाहिए।

मृत्यु के समय बाली ने भगवान राम को ईश्वर के रूप में पहचाना और अपने पुत्र को उनके चरणों में सेवक के रूप में समर्पित कर दिया। श्री राम ने बाली की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए अंगद को स्वीकार कर लिया। सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य मिला और अंगद को युवराज बनाया गया।

अंगद रामायण का एक पात्र, पंचकन्या में से एक तारा तथा किष्किंधा के राजा बाली का पुत्र और सुग्रीव का भतीजा, रावण की लंका को ध्वस्त करने वाली राम सेना का एक प्रमुख योद्धा था। बाली की मृत्यु के उपरांत सुग्रीव किष्किंधा का राजा और अंगद युवराज बना। तारा तथा अंगद अपने दूत-कर्म के कारण बहुत प्रसिद्ध हुए। राम ने उनको रावण के पास दूत बनाकर भेजा था। वहां की राजसभा का कोई भी योद्धा उनका पैर तक नहीं डिगा सका।

अंगद संबंधी प्राचीन आख्यानों में केवल वाल्मीकि रामायण ही प्रमाण है। यद्यपि वाल्मीकि के अंगद में हनुमान के समान बल,साहस, बुद्धि और विवेक है परंतु उनमें हनुमान जैसी हृदय की सरलता और पवित्रता नहीं है।

सीता शोध में विफल होने पर जब वानर प्राण दंड की संभावना से भयभीत होकर विद्रोह करने पर तत्पर दिखाई पड़ते हैं तब अंगद भी विचलित हो जाते हैं। यदि वे अंततोगत्वा कर्तव्य पथ पर दृढ़ रहते हैं तो इसका कारण हनुमान के विरोध की आशंका ही है।वास्तव मे बाली के पुत्र अंगद और दशानन का पुत्र अक्षय कुमार दोनों एक साथ एक ही गुरु से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। अंगद जन्म से ही बहुत ही बलशाली था, और बलशाली होने की वजह से अंगद का स्वभाव चंचल हो गया था। चंचल स्वभाव होने के कारण से अंगद बहुदा रावण के पुत्र अक्षय कुमार को थप्पड़ मर दिया करते थे। अंगद के थप्पड़ के कारण से कई बार अक्षय कुमार मूर्छित हो जाया करता था। अक्षय कुमार ने अपने गुरु से अंगद के बर्ताव की शिकायत की, गुरु जी अंगद को बालक समझ कर उनकी गलतियों को नजरंदाज कर दिया करते थे। लेकिन अंगद अपनी चंचलता से बाज नहीं रहे थे, और प्रतिदिन ही वो अक्षय कुमार को पीड़ित किया करते थे। इसलिए एक दिन अंगद के गुरुजी को क्रोध गया और उन्होने क्रोधित होकर अंगद को श्राप दे दिया। श्राप यह था कि अब भविष्य मे कभी भी अंगद यदि अक्षय कुमार पर हाथ उठता है तो उसी समय अंगद मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। इस श्राप के बाद से ही अंगद अक्षय कुमार से दूरी बनाने लगे थे।

अधिकांशतः कई लोगों को यह प्रश्न विचलित करता है कि जब अंगद भी समुद्र को लांघ सकते थे तो क्यों हनुमान जी सबसे पहले लंका गए? अंगद जी से जब समुद्र लांघने के लिए पूछा गया था,तब उन्होने निम्न पंक्ति कही थी।

अंगद कहइ जाउँ मैं पारा।

जियँ संसय कछु फिरती बारा॥

अंगद जी बाली के पुत्र थे इसलिए बुद्धि और बल में अंगद बाली के समान ही थे। इसलिए अंगद को समुद्र पार करने मे कोई कठिनाई थी, अंगद समुद्र को खेल-खेल में ही लांघ जाते। लेकिन उन्होने कुछ संशय को प्रकट किया, उन्होने यह कहा कि वह समुद्र तो लांघ जाएंगे लेकिन संभव है कि वो वापस नहीं पाएंगे। लेकिन अब प्रश्न यह उठता हैं कि आखिर अंगद को वापस ना आने का संशय क्यों था।

इस संशय का बीज इतिहास में छिपा हुआ है, तो आइये जानते हैं उस इतिहास को।

जब वानर सेना माता सीता के खोज के लिए निकली थी,और समुद्र को लांघने की बात हो रही थी तब अंगद को यही संशय था कि यदि वो समुद्र लांघ कर लंका जाते हैं और वहाँ अक्षय कुमार से सामना होता हैं तो गुरु जी के श्राप की वजह से उनकी मृत्यु हो जाएगी और राम काज अधूरा रह जाएगा। क्योंकि वह वापस लौट नहीं पाएंगे।

इसीलिए माता सीता की खोज के लिए हनुमान जी को प्रोत्साहित किया गया और हनुमान जी समुद्र लांघ कर लंका गए। जब रावण को पता चला कि लंका मे कोई वानर आया हैं और वह हर तरफ उत्पात मचा रहा हैं, लंका को तहस-नहस कर रहा हैं तो रावण को लगा कि यह अंगद ही हैं, क्योंकि रावण की नजर में केवल दो ही वानर शक्तिशाली थे, एक तो बाली और दूसरा बाली का पुत्र अंगद, रावण को पता चल गया था कि राम ने बाली को मार दिया है, इसलिए रावण को पूरा विश्वास था कि लंका में  उत्पात मचाने वाला वानर अंगद ही है। रावण को अंगद के श्राप के बारे में पता था, इसलिए रावण ने हनुमान जी को रोकने के लिए अक्षय कुमार को भेजा था। रावण को लगा कि श्राप की वजह से अंगद मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।

पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।

चला संग लै सुभट अपारा॥

आवत देखि बिटप गहि तर्जा।

ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥

 

लेकिन जल्दी ही उसका भ्रम टूट गया जब उसे पता चला कि हनुमान जी ने अक्षय कुमार को मार दिया है। रावण तुरंत समझ गया की यह कोई दूसरा वानर है और यह भी कम शक्तिशाली नहीं है, इसलिए उसने लंका के सबसे शक्तिशाली योद्धा मेघनाथ को हनुमान जी को पकड़ने के लिए भेजा। क्योंकि रावण जानना चाहता था कि आखिर बाली और अंगद के अलावा इस धरती में कौन इतना शक्तिशाली वानर मौजूद है।

सुनि सुत बध लंकेस रिसाना।

पठएसि मेघनाद बलवाना॥

मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही।

देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥

हनुमान जी ज्ञानिनामग्रगण्यम् हैं उन्हें पता था कि यदि अक्षय कुमार जीवित रहेगा,तो अंगद का लंका मे प्रवेश संभव नहीं हो पाएगा। इसलिए हनुमान जी ने अंगद के जीवन की बाधा को समाप्त कर दिया। और अंत में जब राम जी की सेना लंका पहुंची तो रावण के दरबार मे अंगद ही शांति दूत बन कर गए और वहाँ अपनी वीरता का परचम लहरा दिया था और रावण को भी अपने पैरों में झुकने के लिए विवश कर दिया था।

अंगद ने रावण से कहा कि यदि तुम्हें बाली की बहुत याद रही है तो कुछ दिन बाद तुम भी वहीं चले जाओगे, जहां श्रीराम ने बाली को भेजा है।

इसके बाद अंगद ने रावण के दरबार में घोषणा कर दी थी कि यदि किसी ने उसका पैर हिला दिया तो श्रीराम लौट जाएंगे। इस घोषणा के बाद रावण के दरबार के सभी लोगों ने उसका पैर हिलाने का प्रयत्न किया, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली।

रावण विद्वान और विश्व विजेता था, लेकिन अंहकार के कारण से रावण नाटक कर रहा था, जैसे वह बाली को ठीक से नहीं जानता है। दूसरी ओर अंगद युवा था, लेकिन अपनी बुद्धिमानी से अंगद ने रावण का अहंकार तोड़ा।

कुछ समय पश्चात जिसमें इतने गुण हों उनका उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई पैर नहीं हिला सका और उनका यही गुण एक कहावत बन गई जिसे हम सब "अंगद का पैर " नाम से जानते हैं।

👉इस आलेख को लिखने का प्रयोजन यही है कि वर्तमान की युवा पीढ़ी भी देशकाल,समय ,परिस्थिति को समझे उसके पश्चात ही कोई निर्णय ले। आपसभी से अनुरोध है कि इस विषय पर आपलोग भी अपने विचार अवश्य साझा करें।

धन्यवाद !

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