Tuesday, 15 February 2022

ये कुछ लोग जो व्यर्थ के 'हठी' हैं

 

ये कुछ लोग जो व्यर्थ के 'हठी' हैं

 

👉ये लेख जो आप पढ़ने वाले हैं ऐसे लेख मैं सामन्यतः लिखने की पक्षधर नहीं रहती क्योंकि कुछ तथ्य ऐसे होते हैं जो अत्यधिक संवेदनशील होते हैं ,जिनका ना तो कोई हल होता है ना की इनसे होने वाले विवादों का अंत। ये मैं अपने स्वस्थ लेखिका होने और बने रहने के लिए लिख रही हूं। जैसे एक उत्तम शिक्षक वही है जो सदैव सीखने के लिए तत्पर रहता है वैसे ही ये बात लेखक के लिए भी आवश्यक है,तो राजनीति,फिल्में,टीवी ,सामाजिक गतिविधियां आदि-आदि के बारे में बिना जाने लेखन विस्तार से न्याय कर पाना नहीं हो सकता। कुछ बातें कभी से मेरे दिमाग और 'संस्कारों वाली फाइल' में वाय डिफॉल्ट सेव हो गईं जो जब मन करे मेरे सामने आ कर विचित्र-विचित्र भाव-भंगिमाएं करके मुझे रिझाने लग रहीं थीं,सो इनको शांत करना आवश्यक था।

          इस लेख के शीर्षक में 'हठ' शब्द का प्रयोग इसलिए जरूरी लगा - हठ शब्द ‘ह’और ‘ठ’ दो अक्षरों से मिलकर बना है। इनमें हकार का अर्थ सूर्य स्वर या पिंगला नाड़ी से है और ‘ठकार’का अर्थ चन्द्र स्वर या इड़ा नाड़ी से लिया गया है। इन सूर्य और चन्द्र स्वरों के मिलन को ही हठयोग कहा गया है।

            कोरोना नाम के संक्रमण के आने से पहले मैं 'भारत ज्ञान विज्ञान समिति' की समता बैठक देहरादून में थी। मुद्दे वही थे महिला सशक्तिकरण,अन्धविश्वास,विज्ञान,धर्म आदि। उस बैठक के कुछ देर बाद ही एक भाई से मेरी बात हो रही थी तो उन्होंने कहा कि 'ब्राह्मणों ने बहुत अत्याचार किए हैं ये मनुवादी लोगों ने हमें बहुत सताया है आदि-आदि' मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने मनुस्मृति को पढ़ा है कभी? तो उन्होंने मना किया, फिर बात आई श्रीराम और श्रीकृष्ण पर तब मैंने उनसे कहा कि इनमें से कोई भी 'ब्राह्मण' नहीं हैं तब वो बोले कि 'यदुवंशी और क्षत्रियों ने ही सही पर सताया तो है।' इसपर मैंने कहा कि भाई अब तो सब ठीक है ना ! तो वो हंस कर बोले कि हां ठीक ही है। ये एक ताजा उदहारण है इससे ज्यादा कुछ नहीं।

          उत्तर प्रदेश से आए हुए मुझे यही कोई 10-11 साल हो गए होंगे ,वहां जब हमलोग थे तो महिला संगीत को (गीतों ) में जाना बोला जाता था अलग-अलग तरह के गीतों का बुलावा और आयोजन उतनी ही अलग तरह से होता था।

-शादी में बड़े गीत या मान्य के गीत और बहू दिखाई के गीत -जिसमें बरना-बरनी बधाई आदि।
-बहन-बेटी ,भाई या माता-पिता के घर विवाह का न्यौता देने आती तो 'भात' गाए जाते  
-बच्चों के होने पर जच्चा गाए जाते

      गाए जाने से अर्थ ढोलक और अन्य वाद्य यंत्रों के साथ महिलाऐं -लड़कियां 3-4 घंटे गातीं थीं फिर बाद के आधे -पौने घंटे नृत्य होता जो सभी महिलाऐं नहीं करतीं कुछ-कुछ ही करतीं जिन्हें आता था या जो इक्छुक होतीं। अब 'महिला संगीत' होता है जिसमें 2-1 गाना शगुन का कह कर वहीं सोफे आदि पर बैठकर गा दिया जाता है और शुरू होता 'वैल ट्रेंड एंड फुल प्लांड डांस' जैसा फिल्मी गाना है और उस हीरोइन ने जैसा डांस किया है एकदम उसके जैसा।

     अब महिलाऐं हर छोटी-बड़ी जगह-बेजगह नृत्य करतीं हैं बारातों में सड़क पर ,महिला संगीत में मोमो,चाउमीन,पानीपूरी आदि बनाने वालों के सामने ,कोई-कोई तो जोश में आ कर जो कंधे पर नेट की एक चुन्नी पड़ी होती है,वो भी घुमा के फेंक देती हैं ,अब तो लंहगे पर चुन्नी का चलन भी खतम हो रहा है इसके साक्ष्य आपको इंस्टाग्राम या यूट्यूब के विडिओ पर मिल जाएंगे। एक ओर लड़कियां साड़ी-लंहगा जैसे परिधान की विरोधी होती जा रहीं हैं दूसरी ओर इन्हीं दोनों परिधानों पर लाखों खर्च हो रहे हैं और पहले से ज्यादा ख़रीदे जा रहे हैं। ये कैसे विरोधाभास के पीछे वस्त्रों और धन का अत्यधिक दोहन हो रहा है? शादी करने जाने वाली दुल्हिन ऊँट या घोड़े पर लंहगा और चोली में बैठी मिलेगी चुन्नी वहां भी कोई जरूरी परिधान नहीं है।अपने ही गले के नीचे की 'नेक लाइन। दिखाने में कौन सी आजादी और ख़ुशी महसूस कर रहीं है ये? तो मैं बात कर रही थी नृत्य की ,नृत्य की अपनी कुछ भाव-भंगिमाएं होतीं हैं,नृत्य तो मेनका ने भी किया था। मैंने यूट्यूब आदि पर काफी खोजा पर मुझे मुस्लिम समुदाय की महिलाओं वाले नृत्य के विडिओ ना के बराबर मिले ?

   वर्तमान में ,पृथ्वीलोक पर सर्वव्यापी ब्रह्माश्त्र -'मेरी मर्जी है ,कोई क्या खाएगा,क्या पहनेगा इसका निर्णय कोई कोर्ट या समाज या घर कैसे कर सकता है ? कोई बिकनी पहने या कुछ और। गोविंदा पर फिल्माया और विनय देव का लिखा गाना 'मेरी मर्जी ' याद होगा।

         फिर जहां ये लोग रह रहे हैं उसे मानव समाज क्यों कहा जा रहा है ? ये तो जंगल हुआ और यहां रहने वाले मानव नहीं आदिमानव हुए जिनके पास कपड़े और संतुलित भोजन का विवेक नहीं। मुझे नहीं समझना कि वो कैसे लोग हैं जो वर्तमान में भी ओजोनपरत में छेद और खाद्यान्न कम होने जैसे कारण बताकर जीव-जंतु और पक्षियों को मार कर खाने को सही ठहराते हैं।

         जिनका कोई रोकने या समझाने वाला नहीं उसे पशु समाज में 'अनेर' कहा जाता है। आज आधी आबादी का कुछ प्रतिशत निर्वस्त्र होने को तत्पर है वहीं लड़के अभी भी जींस,पैंट,कुर्ता-पजामी इत्यादि पहन रहे हैं वो किसी समारोह आदि में हाफ पैंट और सेंडो बनियान में नहीं जाते पर लड़कियां-महिलाओं के परिधानों के लिए क्या कहेंगे ? घुटनों से भी ऊपर के निक्कर पहनने की होड़ मची है। बाजार के विभिन्न विज्ञापन बाजार चलाने के लिए आते हैं 'चल गए तो हिट हैं वार्ना कुछ और आजमाएंगे' इसी नवम्बर माह में मैंने एक विज्ञापन देखा जिसमें नई-नवेली दुल्हिन शादी के अगले दिन होने वाले रिशेप्शन में लंहगे में असहज अनुभव कर रही तो वो छोटी स्कर्ट पहन कर आती है लड़का तब भी कुर्ता-पजामी पहने है। ऐसे विज्ञापनों से बहुत से लोग एक झटके में अपनी संस्कृति और संस्कार को गिरवी रख देते हैं जबकि विज्ञापन वाला अपना बाजार-व्यापार चला रहा है। बाजार में एक नाई की दुकान से लेकर बैंड-बाजा तक कौन  लोग बैठे हैं ये बताने की जरूरत नहीं अगर आप 'जावेद हबीब ' को भूले ना हों तो !

           संस्कृति और संस्कार यदि खाने-पहनने ,बिना शादी या शादी के बाद अपने पति या पत्नी को छोड़ कर अन्य के साथ संबंध बनाने या मादक द्रव्य लेने या ना लेने ,अपने संस्कारों और मूल्यों को ना मानने आदि से नहीं फिर किससे है ? धरम-पूजा -पाठ हर बात का विरोध है फिर टीवी पर सैकड़ों ज्योतिषियों वाले चैनल कौनलोग देख और मान रहे हैं ? क्या ये लोग फिर से आदिमानव होने जा रहे हैं ?  


मानवता से आदिमानवता की ओर


               आज के मानव और निएंडरथल मानव के पुरखे एक ही थे। इन्हीं से दो प्रजातियां हुईं। इससे कहा जा सकता है कि कपड़ों का आविष्कार, हमसे पहले निएंडरथल मानवों ने किया होगा।आज से तीस हजार साल पहले जब हिम युग आया तो निएंडरथल उस अत्यधिक ठन्डे वातावरण  का सामना नहीं कर पाए और और वो समाप्त हो गए। उनकी तुलना में हमारे पुरखों ने बदन ढंकने के लिए बेहतर कपड़े बनाना सीख लिया ,आज के इंसान की प्रजाति उस हिम युग में भी बच गई। उस दौर के कई साक्ष्य वैज्ञानिकों ने एकत्रित किए हैं जैसे कि जॉर्जिया कि ज़ुज़ुआना गुफा में रंगे हुए रेशे, इनसे ऐसा लगता है कि उस समय में इंसान ने कपड़े सीने की कला सीख ली थी। कह सकते हैं  कि कपड़े मात्र शरीर ढंकने के लिए ही नहीं, सजावट के लिए भी पहने जाते थे। आज भी बहुत से आदिवासी जो कपड़े नहीं पहनते, वे अपने शरीर को तरह-तरह से रंगते हैं। निएंडरथल मानवों के भी अपने शरीर  को गेरुए रंग से रंगने के साक्ष्य मिले हैं।

      अभिनेत्री आलिया भट्ट का वो विज्ञापन तो याद ही होगा, जिसमें वो कहतीं हैं मैं कोई दान करने की चीज नहीं हूं। इस विज्ञापन की लाइन को असल जिंदगी में आईएएस ज्योति परिहार ने मान लिया उन्होंने अपनी शादी में कन्यादान की रस्म नहीं कराई। इतना भी करने का कष्ट क्यों किया उन्होंने इससे अच्छा विकल्प 'कोर्ट मैरिज' है ना !

लंदन स्थित मेथोलॉजिस्ट,स्टोरी टेलर और कहानीकार डॉ. सीमा आनंद अपनी पुस्तक आर्ट्स ऑफ सिडक्शन' को लेकर लोगों के समक्ष उदयपुर के होटल रेडिसन ब्लू में आईं। वो नाक में बड़ी सी कील, हाथों में धातु की ढेरों चूड़ियां और साड़ी पहनतीं हैं। ये इसलिए बताना जरूरी है क्योंकि -एक ओर लड़कियां शादी से पहले पैरों में बिछुए भी पहनने का शौक रखतीं हैं वहीं शादी होते ही इन सब चीजों को 'बेड़ियां' बतातीं हैं।

      लल्लनटॉप का एक कार्यक्रम 'ऑडनारी ' के नाम से आता है काफी -कुछ होता है उसमें जानने -समझने को साथ ही हर रिश्ते हर बात को इतना अधिक लचीला बनाया जाता है कि किसी भी तथ्य की अपनी कोई पहचान ही ना रहे। जैसे आप "चावल को दाल कहें फिर दाल को पानी और पानी को दही फिर दही को शराब और शराब को ………….." क्या फर्क पड़ता है आप 'संतुष्ट और अच्छा फील कर रहे हैं ' बस बात खतम। अन्तः वस्त्र ना पहन कर पारदर्शी कपड़ों में सार्वजानिक स्थानों पर जाने की जिद को भी सही ठहरना। मैंने नवोदय में शिक्षण के समय देखा है कि 10-11वीं की लड़कियां यदि अंतःवस्त्र ना पहनें तो क्या और कैसा होता है। दीपिका पादुकोण की फिल्म 'गहराइयां' के सहारे से 7-8 साल से बने हुए रिश्ते को तोड़ने के साथ ही किसी निर्दोष का घर बसने से पहले ही उजाड़ देने को सही ठहराना जैसे सैकड़ों मुद्दे हैं उनके कार्यक्रम में।  

गजल गायक भूपिंदर सिंह की आवाज में सुदर्शन फ़ाकिर की लिखी एक गजल सुनी होगी आपलोगों ने  भी -

'शेख कहता है मैं नहीं पीता

हां वो अंगूर खूब खाता है

फर्क इतना है अश्क़ दोनों में

हम तो पीते हैं वो चबाता है

दुनिया कहे बुरी है, ये बोतल शराब की’

आप ना समझे हों तो बता दूं ,अंगूर से भी शराब बनती है तो, आप अगर अंगूर खा रहे हैं तो वो भी शराब के जैसा ही है। ये मतलब है इस गजल के शब्दों का।  

जो भी हो डार्विनवाद या प्रकृतिवाद की बात करें तो अंत में वही शेष रह जाएंगे जो साहसी और संघर्षशील हैं। दुनिया चाहे जब तक रहे पर ये सब यूं ही चलता रहेगा कभी कम कभी ज्यादा।

जय हिन्द

धन्यवाद !

प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में !

Wednesday, 2 February 2022

संत वैलेंटाइन खुद उलझन में हैं!

 

संत वैलेंटाइन खुद उलझन में हैं!

हर साल 14 फरवरी को प्यार के दिन यानि कि वैलेंटाइन डे (Valentine's Day) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कपल्स एक दूसरे को गुलाब, चॉकलेट, तोहफें और कई सारी चीजें देकर प्यार का इजहार करते हैं। 

'ऑरिया ऑफ जैकोबस डी वॉराजिन' किताब में वैलेंटाइन की चर्चा है। ये दिन रोम के एक संत जिनका नाम वैलेंटाइन था, उनके नाम पर पूरी दुनिया में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि संत वैलेंटाइन पूरी दुनिया में प्यार को बढ़ते हुए देखना चाहते थे। लेकिन रोम के राजा सम्राट क्लाउडियस को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। सम्राट खुद शादीशुदा था,लेकिन वह सोचता था कि जो लोग प्रेम करते हैं और शादी करना चाहते हैं, वो अपनी पत्नी और परिवारों के साथ मजबूत लगाव होने की वजह से सेना में भर्ती नहीं हो रहे हैं। लोग ज्यादा संख्या में सेना में भर्ती हो सके, इसके लिए राजा क्लाउडियस ने रोम में शादी पर पाबंदी लगा दी। क्लाउडियस के इस आदेश से संत वैलेंटाइन ने विरोध किया। उनका कहना था कि प्रेम एक नैसर्गिक भावना है और किसी को इससे रोका नहीं जा सकता। इसके अलावा, वह शादी-विवाह पर पाबंदी के भी खिलाफ थे। उनका मानना था कि ऐसा करने से समाज का ढांचा चरमरा जाएगा। इसके विरोध में  संत वैलेंटाइन ने अधिकारियों और सैनिकों की शादी करवाई। संत के इस विरोध से नाराज होकर राजा क्लाउडियस ने उन्हें जेल में डाल दिया ,कहा जाता है कि,पादरी वैलेंटाइन ने जेल में रहते हुए जेलर की बेटी को खत में लिखा था "तुम्हारा वैलेंटाइन"। 14 फरवरी के दिन वैलेंटाइन को फांसी पर चढ़ा दिया। ऐसा कहा जाता है संत वैलेंटाइन को याद करने के लिए 14 फरवरी को 'प्यार के दिन' के तौर पर मनाया जाता है।

     इसे सेंट वेलेंटाइन फीस्ट भी कहा जाता है,सेंट वेलेंटाइन फीस्ट पोप गेलैसियस प्रथम की ओर से 496 ईस्वी में 14 फरवरी को एक कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था। बाद में किंवदंती के साथ इसे प्रेम से जोड़ दिया गया। धीरे-धीरे यह एक ट्रेडिशन बन गया जिस पर कपल फूलों, उपहारों और ग्रीटिंग कार्ड के माध्यम से  एक-दूसरे  के लिए प्यार का इजहार करने लगे।

      वहीं भारत में इसका चलन 1992 के बाद बढ़ा। प्यार के जश्न का यह विशेष अवसर सप्ताह भर का उत्सव बन गया है जिसे वेलेंटाइन वीक कहा जाता है। यह वीक 7 फरवरी को रोज डे से शुरू होता है और 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे के साथ समाप्त होता है। वेलेंटाइन डे सेलिब्रेशन भारत में 1992 तक नहीं होता था। यह आर्थिक उदारीकरण के अलावा टीवी विज्ञापनों और रेडियो कार्यक्रमों के जरिए फैला।

      यह तो एक वजह है ही इस महीने में इस त्यौहार को मनाने की ,लेकिन भारत को ये रोग क्यों लगा इसके लिए कह सकते हैं कि इसी महीने में वसंत का आगमन होता है, जिसे ऋतुराज ,ऋतुपति,मधुपति ,मधुमास आदि भी कहा जाता है। इस ऋतु में रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं और वातवरण में एक मादकता छा जाती है। यूं तो हर मौसम फूलों का होता है। ये तो अपने-अपने मन माने की है।इस मौसम में लोगों के दिल में प्यार की भावना स्वाभाविक तौर पर जगती है अर्थात ऐसा लगता है कि ये सिद्ध हो चुका है कि इन दिनों 'एंडोर्फिन,डोपामाइन,सेरोटोनिन और ऑक्सीटोसिन ये चार हार्मोन वातावरण में अत्यधिक मात्रा या कहा जाए कि ऑक्सीजन से ज्यादा होते हैं सो फरवरी के आते ही कुछ लोगों की जिंदगी की दशा और दिशा तय कर देते हैं। अब कितनों को  ऐसा लगता है ये तो जिनको लगता है वही जानें। हम तो यूं सबदिन प्रेममय ही रहते हैं जो न भी रहेंगे तो क्या कर लेंगे, सो प्रेम का भान बना रहना ही अच्छा है।

      साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्था ‘शाश्वत की ओर से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा में नाटक ‘रेगिस्तान में खरगोश’ का मंचन किया गया। सुरेन्द्र वर्मा लिखित व ऋतंधरा मिश्रा के निर्देशित नाटक में कलाकारों ने पारिवारिक विघटन और मानवीय संबंधों को प्रस्तुत किया। बदलते परिवेश में दाम्पत्य जीवन में आ रही विसंगतियों और तलाक के बाद बच्चों पर पड़ने वाले मानसिक प्रभाव को दिखाया गया।पति से अलग रह रही एक महिला और उसकी बेटी के बीच हुए मार्मिक संवाद दर्शकों को सोचने के लिए मजबूर करते रहे। एक महिला नए सिरे से जीवन शुरू करना चाहती है लेकिन उसकी बेटी और बेटी की नानी नए रिश्ते को स्वीकार नहीं करती।

    खरगोश को प्रेम या खुशी की निशानी माना जाता है। ब्रिटेन और उत्तरी अमेरिका में "खरगोश खरगोश खरगोश" ,कहा जाने वाला एक अंधविश्वास है जिसमें हर व्यक्ति एक महीने के पहले दिन जागने पर "खरगोश", "खरगोश" या "सफेद खरगोश" शब्दों को जोर से कहता या दोहराता है, जिससे आने वाले समय के लिए अच्छाई सुनिश्चित हो सके,सुख पर पूर्णाधिकार हो सके। अधिकांश ग्रीटिंग्स पर भी खरगोश की तस्वीरें इसी वजह से बनी होतीं हैं। एक मुहावरा भी है "फरवरी का खरगोश "।

वेलेंटाइन के नाम पर 

        कुछ रीजन्स में दूसरे क्षेत्रीय रीति-रिवाजों का भी पालन किया जाता है। उदाहरण के लिए नॉरफ़ॉक में एक करैक्टर जिसे 'जैक' वेलेंटाइन कहा जाता है, घरों के दरवाजों को नोक करता है और बच्चों के लिए मिठाई और गिफ्ट वहां पर छोड़ता है। स्लोवेनिया जैसी जगहों पर इस दिन अंगूर के बागों और खेतों में काम शुरू होता है।

       जो लोग वैंलेटाइन डे पर घर से निकलना चाहते हैं उन्हें,अंडमान-निकोबार द्वीप ,केरल के मुन्नार,जम्मू कश्मीर,सिक्किम के गंगटोक के बारे में लोग कम ही जानते हैं. गंगटोक कपल्स के लिए बेस्ट जगह मानी जाती है,फिलिपींस में वैलेंटाइन डे के मौके पर युवा जोड़े सरकार की तरफ से प्रायोजित कार्यक्रम में शादी करते हैं

    घाना- राष्ट्रीय चॉकलेट दिवस घाना में 14 फवरी को 'राष्ट्रीय चॉकलेट दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. 2007 में देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने पहल की शुरुआत की थी.

     वैलेंटाइन डे डेनमार्क के नए त्योहारों में से एक है,यहां वैलेंटाइन डे गुलाब के फूल और चॉकलेट तक सीमित नहीं है। दोस्त और प्रेमी हाथ से तैयार कार्ड की अदलाबदली करते हैं, उस पर सफेद गुलाब का फूल होता है। जापान में पुरुषों को 14 मार्च तक बदले में गिफ्ट्स देने का समय होता है, जिसे 'सफेद दिवस' कहा जाता है।

लेकिन आज-कल का प्यार भी रफ-टफ हो चला है। जिस स्पीड से दो लोग एक-दूसरे के पास आते हैं, दोगुनी स्पीड से निकल भी लेते हैं। बस छोड़ जाते हैं एक सवाल कि प्यार क्या होता है, कैसे होता है? इस सब के बाद शुरू होते हैं 'प्यार के साइड इफेक्ट'वाले दिन। वैसे आप इन दिनों में भी पॉजिटिव रह सकते हैं जैसे-

फरवरी 15 – हैप्पी स्लैप डे- स्लैप डे पर अपनी बुरी आदतों को थप्पड़ मारकर अपनी लाइफ से भगाएं जो ऐसा न कर पाएं तो उससे थोड़ी कम बुरी आदत से काम चलाएं।  
फरवरी 16- हैप्पी किक डे किक डे पर अपने मन में आए नेगेटिव सोच को बाहर करें आसान नहीं है,पर कोशिश कर सकते हैं।
फरवरी 17- हैप्पी परफ्यूम डे – परफ्यूम डे पर अपनी जिंदगी को सकारात्मक गंध से महका दें नहीं तो एक गमले में ही सही जो फूल आपको पसंद हो लगा लें। 
फरवरी 18- हैप्पी फ्लर्टिंग डे  फ्लर्टिंग डे पर नए दोस्त बनाएं और लाइफ को नए सिरे से जिएं क्योंकि सबसे सही विकल्प जीवन ही है।
फरवरी 19- हैप्पी कन्फेशन डे  कन्फेशन डे पर अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करें और खुद को हल्का महसूस करें।
फरवरी 20- हैप्पी मिसिंग डे मिसिंग डे पर पार्टनर के साथ रही अच्छी यादों को याद करें साथ ही परिवार के अन्य सदियों को ख़ुशी देना सीखें। 
फरवरी 21- हैप्पी ब्रेकअप डे -नया साथी ढूंढिए मत खुद वा खुद मिलने का इंतजार करके देखिए।

  इस सबके साथ ही 'संस्कृति बचाओ मंच' ने अश्लीलता फैलाने पर लट्ठ पूजा की चेतावनी दी है, तो कांग्रेस गांधीगिरी से गुलाब का फूल देने की बात कर रही है।

 उनका कहना है कि जो लोग संस्कृति के खिलाफ अश्लीलता फैलाएंगे हम उनकी लट्ठ पूजा करेंगे। यही नहीं, संस्कृति बचाओ मंच (Sanskrit Bachao Manch) ने वैलेंटाइन डे पर फूहड़ता रोकने के लिए 22 अलग-अलग दस्‍ते तैयार किए हैं, जो कि पार्कों और रेस्टोरेंट में जाकर प्रेमी जोड़ो को संस्कृति का पाठ पढ़ाएंगे। कांग्रेस कहना है कि हम प्रेमी जोड़ों को गांधीगिरी से गुलाब का फूल देंगे और उनकी सुरक्षा भी करेंगे, क्‍योंकि महात्‍मा गांधी ने कहा था कि अहिंसा परमो धर्म।

वेलेंटाइन के नाम पर 


      भोपाल पुलिस ने पूरे शहर में होर्डिंग्स के जरिये यह संदेश दिया है कि सरेराह कोई मनचला युवतियों पर कमेंट्स करता है तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा अलग-अलग होर्डिंग्स में छेड़छाड़ का विरोध करने वाले कार्टून बनाकर मनचलों पर कार्रवाई के संकेत दिए हैं। वहीं, भोपाल पुलिस का कहना है कि कोई भी व्यक्ति अगर छात्राओं या युवतियों के साथ छेड़छाड़ करता है, तो पुलिस एक्शन लेकर उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई करेगी। ये तो एक-दो उदहारण हैं

      वैलेंटाइन-डे को लेकर डिजिटल ठग ब्रांडेड कंपनियों के नाम से मुफ्त और डिस्काउंट का ऑफर लिए बैठे हैं। ऐसे में अगर आपके मोबाइल या ई-मेल पर ऑफर और कूपन आ रहे हैं, तो सावधान हो जाएं। लुभावने ऑफर के चक्कर में फंसकर आप जेब ना लुटा बैठें। लॉकडाउन के बाद डिजिटल फ्रॉड के बढ़ते ट्रेंड में यह नया तरीका जनवरी के आखिरी हफ्ते से शुरू हुआ है। महानगरों के अलावा गांवों के लोग भी इसका शिकार बने हैं। शिकायतें बढ़ीं, तो साइबर सेल ही नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय के साइबर सेंटर ने भी लोगों को इस नए ट्रेंड से सतर्क रहने को कहा है। सेंटर ने इस बात को लेकर भी चेताया है कि ऐसे लिंक आपके मोबाइल, लैपटॉप में मालवेयर भी इंस्टॉल कर सकते हैं।सभी का अपना-अपना धंधा है।

बाकी आपाधापी वाली दुनिया में प्यार करने और मुँह फेरने के ढेरों तरीके और कारण हैं जिसे जो सही लगे !

   मैं किसी वैलेंटाइन डे की पैरवी नहीं करती ,न ही मेरे मना करने से कोई मानेगा। जो भी करो सोच-विचार कर करो तो हालात सम्हालने लायक रहते हैं नहीं तो ,जय राम जी की !

पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया देंगे तो मैं समझ पाऊँगी कि मैंने क्या -कैसा लिखा है। धन्यवाद !

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