Monday, 18 January 2021

#ठुकरा के मेरा प्यार मेरा इंतकाम देखेगी -ये प्रेम नहीं | प्रेम की पराकाष्ठा प्रेम से इतर कुछ नहीं !

 


                               
विवाह बंधन 

💞प्रेम और विवाह दोनों एक दूसरे से अलग हैं सच्चा प्रेम फल की कामना नहीं करता परन्तु विवाह के बंधन में कर्तव्यता का बोध है। इस लेख के द्वारा निर्णय ले सकते हैं कि आपके लिए क्या और कितना आवश्यक है-प्रेम, विवाह या दोनों

 मांसाहार पर आपत्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 18 सितम्बर 2015 को निर्णय देने के लिए कबीरकी साखी का सहारा लिया –

 कबिरा तेरी झोपड़ी गलकटियन के पास,

 जैसी करनी-वैसी भरनी, तू क्यों भयो उदास

    तब मम्मी भी थीं, तो ज्यादा समय नहीं दे पाती थी अभिव्यक्ति के लिए ,मेरे दिमाग में तब भी ये बात आई थी कि जो हमारे लिए न्याय व्यवस्था है उसमें सुप्रीम कोर्ट आखिरी उम्मीद होती है हमारी ,वो भी अगर हमें "साखी " सुना दे या नीति के वचन से चलने को कहे तो फिर कोई वहां जा के क्या करे ? इतने हो हल्ले के बाद बदला कुछ नहीं आज सितम्बर 2021 में जो बदला है कोरोना ने भले बदल दिया। चलिए ये तो फिर भी "मांसाहार और शाकाहार " की बात थी

       💪इससे पहले, "2010 की बात है. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया था कि -शादी से पहले सेक्स को गुनाह नहीं माना जा सकता है. कारण ये है कि पुराणों में राधा-कृष्ण भी साथ रहते थे और उनके बीच भी एक रिश्ता था।"

ये कौन और कैसे लोग बैठे थे कोर्ट में ,जिनकी ऐसी सोच और इतनी संकीर्ण जानकारी थी

राधा-कृष्ण के बारे में ? जब राधा-कृष्ण साथ थे तब उनकी उम्र कितनी थी पता थी कोर्ट को ?

 एक तरफ आज लोग भगवान को मिथक बताते है ,श्रीराम के होने के प्रमाण मांग रहे हैं वहीं दूसरी ओर राधा और कृष्ण की लीलाओं को अपनी वासनाओं से तौल रहे हैं। मतलब जब अपना मन हुआ मान लिया कि " भगवान है अपना मन नहीं हुआ तो कहीं कोई भगवान नहीं ?

एक राधा,एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा
अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी

   एक राधा,एक मीरा ...”  इस गीत में, हमें बताया गया है कि कृष्ण,राधा से उतना ही प्यार करते हैं जितना कि वह मीरा से प्यार करते हैं। यहां समस्या यह है कि राधा एक पौराणिक चरित्र है, जो 800 साल पहले रचित जयदेव की गीत गोविंदा से आई है, और मीरा एक ऐतिहासिक राजकुमारी और कवि-संत हैं, जो 400साल पहले राजस्थान में रहती थीं।

        राधा-कृष्ण को बहुत जल्दी समझने की कोशिश करने में कुछ नहीं रखा। यह बहुत बड़ा विषय है। भारत में बहुत सी बातें समय के साथ चलन में हो गई हैं। जैसे राधा-कृष्ण नाच रहे हों।राधा-कृष्ण एक नाटक है। पेंटिंग राधा-कृष्ण, कृष्ण-राधा चुंबन, ये सब बकवास हैं।चित्रकारों के ब्रश ने कब राधा -कृष्ण को साथ में युवा बना के पेश कर दिया किसी को पता ही नहीं चला और धीरे -धीरे युवावस्था से ,अजंता -एलोरा सरीखी मूर्तियों का रूप तस्वीरों में उतार दिया। राधा-कृष्ण दर्शन को मुक्त आत्मा द्वारा समझना होगा, न कि सशर्त आत्मा द्वारा। इसलिए हम उस सौभाग्यशाली पल का इंतजार करेंगे जब हम आजाद होंगे, तब हम राधा-कृष्ण-प्राण-विद्यातिर को समझेंगे। क्योंकि कृष्ण और राधा, भौतिक क्षेत्र पर नहीं हैं।समाज में कहीं -कहीं ये भ्रम भी है कि -कृष्ण ने गोपियों और राधा को धोखा दिया। आने की कह गए पर आए नहीं ,उसके बहुत सारे कारण हैं। पर सच यही है कि किशोरावस्था से युवावस्था तक का जो पथ है उसमें बहुत से निर्णय सोच -समझ कर लेने होते हैं। 

राधा और कृष्ण 




                अपने परिजनों और समाज के लिए। कृष्ण का लौट कर ना आना वही था। जब कृष्ण ने उद्धव जी से कहा कि -उधौ मोहि ब्रज विसरत नाहीं……." और गोपियों का भी यही हाल होगा। इस पर उद्धव जी गोपियों का दर्द " अपने निर्गुण ब्रह्म या योग से दूर करने की बात कृष्ण से कहते हैं " कृष्ण उद्धव जी को जाने की अनुमति ये सोच कर दे देते हैं कि -उद्धव ,जो योग को प्रेम से बड़ा मानते -समझते है उनका भ्रम दूर करने का यही एक तरीका है और वही होता है। गोपियाँ उनको बहुत कुछ कहतीं हैं ,और कृष्ण के प्रेम को अपना एक सहारा ,हारिल पक्षी की लकड़ी के सामान बताती हैं।यदि यह धरती पर उतरता भी है तो अपने पैरों पर लकड़ी का टुकड़ा लेकर उतरता है एवं उसी पर बैठता है। उद्धव जी जब वापस आते हैं तो प्रेम को ही सत्य मानते हैं और अपने ज्ञान को मिथ्या कहने लगते हैं।

       कुछ विद्वानों के मुताबिक, राधा-कृष्ण की कहानी मध्यकाल के अंतिम चरण में💬 भक्ति आंदोलन के बाद लोकप्रिय हुई. उस समय के कवियों ने इस आध्यात्मिक संबंध को एक भौतिक रूप दिया. प्राचीन समय में रुक्मिनी, सत्यभामा, समेथा श्रीकृष्णामसरा प्रचलित थी जिसमें राधा का कोई जिक्र नहीं मिलता है. 3228 ईसा पूर्व देवकी पुत्र श्रीकृष्ण का जन्म हुआ. कुछ समय तक वह गोकुल में रहे और उसके बाद वृंदावन चले गए थे एक मत यह भी है कि राधा ने श्रीकृष्ण से विवाह करने से मना कर दिया था क्योंकि उन्हें लगता था कि वह महलों के जीवन के लिए उपयुक्त नहीं हैं. राधा एक ग्वालिन थीं, जबकि लोग श्रीकृष्ण को किसी राजकुमारी से विवाह करते हुए देखना चाहते थे. श्रीकृष्ण ने राधा को समझाने की कोशिश की लेकिन राधा अपने निश्चय में दृढ़ थीं.

      एक अन्य प्रचलित व्याख्या के मुताबिक, राधा ने एक बार श्रीकृष्ण से पूछा कि वह उनसे विवाह क्यों नहीं करना चाहते हैं? तो भगवान श्रीकृष्ण ने राधा को बताया कि कोई अपनी ही आत्मा से विवाह कैसे कर सकता है? श्रीकृष्ण का आशय था कि वह और राधा एक ही हैं. उनकाअलग-अलग अस्तित्व नहीं है.ऐसी भी मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने राधा से इसलिए विवाह नहीं किया क्योंकि वह साबित करना चाहते थे कि प्रेम और विवाह दो अलग-अलग चीजें हैं. प्रेम एक नि:स्वार्थ भावना है जबकि विवाह एक समझौता या अनुबंध है.एक मत के मुताबिक, श्रीकृष्ण ने राधा से इसलिए विवाह नहीं किया ताकि मानव जाति को बेशर्त और आंतरिक प्रेम को सिखाया जा सके. राधा-श्रीकृष्ण का संबंध कभी भी भौतिक रूप में नहीं रहा बल्कि वह बहुत ही आध्यात्मिक प्रकृति का है पौराणिक कथाओं में प्रचलित अन्य कथाओं की तुलना राधा-कृष्ण से नहीं की जा सकती है तीनों लोकों में राधा नाम की स्तुति सुनकर एक बार देवऋर्षि नारद चिंतित हो गए। वे स्वयं भी तो कृष्ण से कितना प्रेम करते थे। अपनी इसी समस्या के समाधान के लिए वे श्रीकृष्ण के पास जा पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि कृष्ण सिरदर्द से कराह रहे हैं नारद ने पूछा, `भगवन, क्या इस वेदना का कोई उपचार नहीं है?कृष्ण ने उत्तर दिया, `यदि मेरा कोई भक्त अपना चरणोदक पिला दे, तो यह वेदना शांत हो सकती है। यदि रुक्मिणी अपना चरणोदक पिला दे, तो शायद लाभ हो सकता है नारद ने सोचा, भक्त का चरणोदक भगवान के श्रीमुख मेंफिर रुक्मिणी के पास जाकर उन्हें सारा हाल कह सुनाया।रुक्मिणी भी बोलीं, `नहीं-नहीं, देवऋर्षि, मैं यह पाप नहीं कर सकती।नारद ने लौटकर रुक्मिणी की असहमति कृष्ण के सामने व्यक्त कर दी।कृष्ण ने उन्हें राधा के पास भेज दिया। राधा ने जैसे ही सुना, तो तुरंत एक पात्र में जल लाकर उसमें अपने पैर डुबा दिए और नारद से बोलीं, -`देवऋर्षि इसे तत्काल कृष्ण के पास ले जाइए। मैं जानती हूं इससे मुझे घोर नर्क मिलेगा,किंतु अपने प्रियतम के सुख के लिए मैं यह यातना भोगने को तैयार हूं।

तब देवऋर्षि नारद समझ गए कि तीनों लोकों में राधा के प्रेम की स्तुति क्यों हो रही है। प्रस्तुत प्रसंग में राधा ने अपने प्रेम का परिचय दिया है। यही है सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा, जो लाभ-हानि की गणना नहीं करता

     एक कहानी के अनुसार असल में राधा की शादी हुई ही नहीं था। ब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार राधा अपने घर को छोड़ते समय अपनी परछाई (छाया राधा/माया राधा) घर पर मां कीर्ती के साथ छोड़ गई थीं.। छाया राधा की शादी रायान गोपा (यशोदा के भाई) से हुई थी और अनय से नहीं, इसीलिए ये भी कहा जाता है कि राधा रिश्ते में श्रीकृष्ण की मामी हुई थीं।इनकी शादी साकेत गांव में हुई थी जो बरसाने और नंदगांव के बीच स्थित था। यानि राधा ने अपना शादीशुदा जीवन अच्छे से व्यतीत किया भले ही मन से वो कृष्ण से जुड़ी रहीं।

                तो बात है वर्तमान समय के प्रेम की ,यूं तो आज प्रेम एक हाथ दे एक हाथ ले वाला है या कहें तो 07 फरवरी वेलेंटाइन डे से शुरू हो कर 14 फ़रवरी आते -आते सब हो लेता है फिर चाहे शारीरिक संबंध हो या ब्रेकअप होना हो तो,दुश्मनी भी हो जाए तो भी, "हद से गुजर जाना है "

 हर रोज अखबार और सोशल साइट भरी रहतीं है ऐसी खबरों से। प्रेम अगर गहराई तक जाता है, बिना किसी निजी स्वार्थ के,केवल एकदूसरे की ताकत बनता है तो ये लाजमी है कि " दोनों में किसी का अपना-बेगाना कुछ नहीं रहता,सब

     कुछ देने का मन करता है बिना किसी हिचक या किन्तु -परन्तु के " लेकिन टूटने पर या अनबन पर बात कोर्ट में पहुँच जाती है ? लानत -मलानत होती है ? ऐसा क्यों ? इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि दुनिया का कोई भी "रिस्ता  एक लम्बा रिस्ता " बिना किसी एक के,दूसरे से ज्यादा झुके हरगिज नहीं बना रहा सकता। तो टूटने के बाद इतना बुरा कैसे और क्यों हो जाता है अगर वो  "राधा-कृष्ण " के पैमाने वाला होता है तो ? तो उनकी आड़ ले कर अपनी इच्छाएं पूरी करने का अधिकार किसने और कैसे दे दिया किसी को भी।

 किसी का दुःख कम करना ,एक हमदर्द होना या नेक राह दिखाना ये तो आप ऐसे भी कर

       सकते हैं उसके लिए  "शारीरिक संबंध बनाना " एक इलाज कैसे हो सकता है वो भी तब ,जब आप किसी अन्य के साथ विवाह के बंधन में बंधे हैं ,या आप जिससे प्यार करते हैं उसके साथ विवाह नहीं कर सकते -दोनों ही स्थितियों में आपके संबंध को,आपको केवल कमजोर ही बनाएंगी इससे ज्यादा कुछ नहीं। प्यार अहसास का जज्बा है उसे अहसास से ही फलने -फूलने दीजिए। वासना का लिजलिजापन मत घोलिए उसमें। आपके दिल -दिमाग में अगर कोई खोट नहीं तो आप किसी से भी नजरें मिला के बात कर सकते हैं हमेशा।

    आज हम सभी सोशल नेटवर्क से ऐसे जुड़े हैं जितने पहले पड़ौसियों से नहीं जुड़े होंगे शायद उसी " अनजान जुड़ाव ने " हम सब को कहीं न कहीं किसी ऐसे एक शख्स से जोड़ रखा है जिसके बिना लगता है हमारी दुनिया अधूरी या बेजान हो जाएगी। 15-16 साल से ले कर

शादी तक ज्यादातर लड़के -लड़की किसी ना किसी से जुड़े ही होते हैं ,तो जाहिर सी बात है कि किसी और के साथ शादी के बाद वो दूसरा " शख्स " अचानक से किसी बुखार की तरह उतर थोड़े जाएगा, ना ही किसी सॉफ्टवेयर फाइल की तरह हर जगह, यानि कि रिसाइकलबिन से भी डिलीट तो नहीं हो जाएगा। हाँ इतना जरूर है कि समय रहते बढ़े हुए फर्ज और सदस्यों सेखुद व खुद वो पहले वाला जुड़ाव धुंधलाता जाएगा और मिलने –जुलने, बात करने की तीव्रताभी कम हो ही जाएगी और होनी भी चाहिए ,तभी आप आगे की जिंदगी से सुकून की उम्मी कर सकते हैं वरना हरगिज नहीं। क्योंकि अब आपका दुःख -दर्द बांटने वाला कोई आपका हमसाया -हमसफ़र बन के आ गया है।

जितने भी ये वेब सीरीज वाले या फिल्मों वाले जो सिर्फ और सिर्फ यौन सामग्री दिखाने के ही पक्षधर हैं ,मुझे नहीं पता वो अपने परिवार के लिए क्या और कैसा सोचते हैं पर समाज में जो ये हद ऊपर की " विकृतियां " आईं हैं उनको बढ़ावा यहीं से मिल रहा है।

            तो जज साहब !आप प्रेम की बात कर रहे हैं तो प्रेम की पराकाष्ठा तक जाइए और प्रेम की पराकाष्ठा -प्रेम है और कुछ भी नहीं वहां मिलना -खोना नहीं है प्रेम तो वो "पारस पत्थर" है जो आपको हर रोज कल से ज्यादा चमकदार बनाएगा। तो जनाव प्रेम करने के लिए ,प्रेमी या प्रेमिका बनने के लिए बड़ा जिगरा चाहिए ,साहस -हिम्मत चाहिए।मौम के जैसे घुलने -पिघलने का धैर्य चाहिए। मिटटी में बीज की तरह सीलना-मिलना ,अस्तित्वहीन हो कर पुनः अंकुरित होने को तैयार रहना है। प्रेम की परिभाषा आज भी शदियों पुरानी ही है। फ़िल्मी दुनिया ने कितना भी बदला हो इसे पर सच्चाई इसकी अभी भी वही है -प्रेम का तात्पर्य प्रेम,लेन-देन तो हरगिज नहीं।

                  यहां मैंने आपको एक जज की कुर्सी और नीति वचनों के तालमेल को दिखाया। कृष्ण और राधा के प्रेम की गंभीरता ,चरणोदक, वेलेंटाइन डे आदि की बात की। हारिल पक्षी भी शायद आपने देखा हो कभी और उसके बारे में जाना और पढ़ा हो हिंदी की किताबों में।

😀प्रतिक्रिया देने में कंजूसी न करें 

 

        




10 comments:

  1. Kafi Guth Vichar, Muje hardly 20-30% Chijo ki Jankari hogi is Post ke.
    Good Work.

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    1. Koi bat nahi , ab to ho gai jankari , bahut jaroori hain is tarah ki chijen janana
      Kabhi se chah rahi thi likhana ab ja ke ho paya hai |

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  2. Bahot accha blog hai . Good information 👍

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    1. ब्लॉग देखने और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए ,मैं आशा करती हूँ कि आप आगे भी प्रतिक्रिया करते रहेंगे। पुनः आभार !

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  3. दिखाई दे गया चिट्ठा अनुसरणकर्ता बटन :)

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    1. जी सर ! और यहां तक आने के लिए आभार

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  4. कोशिश करें लगातार लिखें और पोस्ट करें |

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  5. जी धन्यवाद आपका ! कोशिश करूंगी।

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  6. जी सर ! ब्लॉग को स्वीकार करने के लिए भी आभार

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