राजेश जोशी -एक भेंट
कोरोना के कारण लम्बे समय से सामाजिक आवागमन या साहित्यिक कार्यक्रम के दरवाजे क्या,खिड़कियां भी बंद सी चल रहीं थीं। पर 17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस 2022 जो 6 जून से 9 जून तक होना निश्चित हुई है। इस बार ये "भारत की संकल्पना" पर आयोजित की गई। इनमें भारत ज्ञान विज्ञान समिति के 23 राज्य इकाइयों के विभिन्न राज्यों से 600 प्रतिनिधि पहुंचे। उत्तराखंड से हम 11 प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया। मैं एक दिन पहले ग्रेटर नोएडा पहुँच गई थी। नोएडा वाले भाई का बेटा मुझे छोड़ने आया,दिल्ली ,मेट्रो और एस्केलेटर इन सब को छोड़े 8 साल हो चुकी हैं दिल्ली आने के लिए बड़ी हिम्मत जुटानी पड़ती है मुझे। पर इस बार में एस्केलेटर से बहुत बार चढ़ी-उतरी तो अब उसके साथ सहज हूँ वरना पहली बार तो बड़ा मुश्किल था।
चढ़ते समय मेरे पीछे जो दो सज्जन थे उन्होंने मुझे आसान रास्ता बताया कि-"पहले पीली लाइन के आसपास भी पांव रख जाए कोई दिक्कत नहीं उसके बाद ही पैरों को लाइन के अंदर कर लीजिए" वैसा ही किया और आसान हो गया। नहीं तो जब तक मैं पीली लाइन के अंदर पांव रखने को तैयार होती लाइन निकल जाती और मैं उस लाइन को जाती हुई ट्रेन के जैसे देखती फिर दूसरी के लिए तैयार होती रहती। 5 जून को 8:40 की हमारी ट्रेन थी भोपाल एक्सप्रेस। बाकी 10 साथी हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर मिले मुझे।
मेरे लिए अकेले इतने दिनों का और दूर का ये पहला अवसर था,पर सबलोग साथ थे तो एकदम निश्चिन्त थी मैं। ट्रेन के चलने के बाद कुछ साथियों ने अपने-अपने टिफिन बॉक्स निकाले सामान्य बातें कीं और नए लोगों से परिचय हुआ। लगभग 11:30 पर सभी अपनी-अपनी बर्थ पर लेट गए।
कुछ ही देर बाद हमारे एक साथी और उनकी बेटी को प्यास लगी ,"पानी मिल जाता तो सो पाते" जैसे वाक्य दोहरा रहे थे,मैं नींद आते भी सो नहीं पा रही थी जैसे ही एक स्टेशन पर जरा देर को गाड़ी रुकी मैंने बाहर खड़े एक यात्री से पानी वाले भैया को बुलाने को कहा,पैसे पहले से ही निकाल रखे थे फिर वो अंदर ही आ गया मैंने एक बोतल ले के उनकी बेटी को दे दी और एक उन भाईसाहब ने खुद ले ली,तब जा कर हमसब शांति से सो सके।
मेरी आँख सुबह जल्दी खुल ही जाती है सो 5-5:30 पर मैं उठ ही गई बहुत कुछ था बाहर जो आँखों के कैमरे में कैद करती जा रही थी मैंने कुछ-कुछ तस्वीरें साझा भी की। सुबह नियत समय पर हमलोग कमलापति स्टेशन भोपाल पहुंच गए थे। AIPSN टीम की ओर से लगभग एक घंटे के अंतराल से बस हमें लेने पहुंच गई क्योंकि हमें अन्य राज्य के साथियों को भी साथ लेना था और हमें जिस स्टेशन पर रुकने को कहा गया था हम वहां से भी नीचे स्टेशन के बाहर आ गए थे। हमसभी एकदूसरे से काफी जुड़ाव महसूस कर रहे थे टोली में हम कुल 3 महिला सदस्य थे तो सभी लोग हमारे सहयोग के लिए तत्पर थे।
बस द्वारा हम "जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी " जंगल के रास्ते पहुंचे जहां मोर आदि भी दिखे। हॉस्टल में स्टूडेंट्स भी थे सो हमलोगों को ऊपरी मंजिल पर ही ठहरना पड़ा हम दो लोगों को ऊपर और एक मैम को स्वास्थ्य की दृष्टि से नीचे कमरा दिया गया। लगभग सभी व्यवस्थाएं चाक -चौबंद थीं। नाहा-धोकर हमसब कार्यक्रम स्थल एक्सटोल कॉलेज बाबड़ियां कलां भोपाल बस से पहुंचे। इन दोनों की दूरी लगभग 8 किमी है पर नई जगह को खोजना आसान नहीं होता। हमलोग थोड़ा घूमते-घुमाते ही अपने आयोजन स्थल पर पहुंचे सके। देखकर मन खुश हो गया कि हम इतने विशाल आयोजन के भागीदार और साक्षी बने हैं। इसके साथ ये बात बड़ी ही सुखकर रही कि चाहे हमने ज्यादा दूरी तय की पर हमको वो जरा भी बोझिल नहीं लगी क्योंकि हमारे सभी बड़े और छोटे साथी अपनी बातों अपने सुझाव और क्रियाकलापों से हमें आनंदित करते रहे।
सुबह से बस एक-दो कप चाय ही ली थी हमलोगों ने तो पेट में वो भूख वाली घड़ी की सुइयों की टिक-टिक ज्यादा तेजी से हो रही थी। नास्ते में इडली-सांभर,पोहा,दूध के साथ कॉर्नफ्लेक्स,दही,मीठा,चाय-कॉफी,फल जैसी चीजें थीं। मुझे नहीं लगता की कहीं कोई एक भी कोना ऐसा छूटा हो कि अमुक व्यक्ति के खाने के लिए कोई खाद्य पदार्थ नहीं है।
नास्ता आदि से निबट कर एक-दूसरे से मिलने-मिलाने के बाद पंजीयन का कार्य शुरू हुआ। इस समय तक विभिन्न राज्यों से कई स्टॉल भी लग गई थीं। उत्तराखंड BGVS की ओर से पुस्तकों और BGVS के एक साथी रौशन मौर्या जी की लीची के शहद की भी स्टॉल लगी। दोपहर के खाने के बाद शाम 4 बजे से उद्घाटन सत्र,सांस्कृतिक कार्यक्रम,स्वतंत्रता के 75 साल और भारत के विचार पर केंद्रित कार्यक्रम हुए जिसमें केरल से डॉ साईनाथ,के के शैलजा केरल से,डॉ राजेश जोशी (साहित्य जगत से )भोपाल ,डॉ इंदुमती आदि के वक्तव्य थे। डॉ राजेश जोशी जी को मैंने दूर से ही पहचान लिया सो उनसे मिलने चली गई और एक भाई से तस्वीर भी निकलवाई,एक अलग तरह का अनुभव मिला उनसे मिलकर क्योंकि इससे पहले मैं ऐसे किसी लेखक या कविताकार से नहीं मिली।
रात 9 बजे के खाने के बाद सभी अपने-अपने ठहरने के स्थान पर चले गए। BGVS उत्तराखंड ,हिमाचल एवं हरियाणा के प्रतिनिधि "जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी " में ठहरे थे। फ्रेस और चेंज करने के बाद मैं रात 12:30 तक हमारे कमरे से लगी बालकनी में बैठी रही। मन को छू लेने वाली ठंडी हवा,"ठंडी हवाएं लहरा के आएं ………….." गाने का आभास करा रही थी।
मच्छरों का नामोनिशान नहीं एकदम हमारे पहाड़ों सी शांति। हाँ यहीं से मैंने, जाना कि बालकनी का कितना महत्त्व होता है । इस पर एक नाटक लिखा है। हम लेखकों का ये अधिकार है कि जिस समस्या का हम निराकरण ना कर सकें उसे कमसे कम "शब्दों में तो ढाल" ही दें।
सुबह 5:30 तक मैं उठ गई थी क्योंकि ऐसे में जितनी जल्दी अपने सुबह के कामों से निबट लिया जाए उतना अच्छा है। सुबह ही मैंने पहले दिन के कार्यक्रम की रिपोर्ट का एक खाका तैयार किया। और उसी बालकनी में झीलों के शहर भोपाल को महसूस करने की कोशिश करती रही। मुझे तो भरा -पूरा समृद्ध सा लगा भोपाल जो-जैसा है उससे तालमेल रखते लोग बाकी भटकने की कोई सीमा नहीं। गैस त्रासदी एक ना भूलने वाली घटना तो है ही।8 बजे सुबह की चाय आ गई थी। आज का सफर 8 किमी का ही था और बिना किसी भटकाव के हम सब एक्सटोल कॉलेज उतना ही आनंद लेते हुए पहुंचे। अब तक तो हमसब एक परिवार जैसे हो गए और एकदूसरे के चेहरे भी याद हो गए कि कौन है बस में और कौन नहीं।
पहले सत्र में निश्चित विषय (शिक्षा और NEP,सार्वजानिक स्वास्थ्य कोविड 19 के समय में PSM प्रतिक्रिया और जमीनी आवाजें आदि ) आधारित विशेषज्ञों के वक्तव्य थे। सभी समूह अपनी-अपनी रूचि एवं आवश्यकता से विषयों को सुनने -समझने चले गए। दूसरे सत्र में इन्हीं विषयों की कार्यशालाएं हुईं और तीसरे सत्र में अपने-अपने विचार रखने का अवसर मिला। रात 7:30 से 09:00 तक मनमोहक एवं तार्किक,सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए।
इसी सब में मैंने सभी स्टॉल देखीं और BGVS के प्रकाशन के अतिरिक्त और कई पुस्तकें खरीदीं,पुस्तकें लेते समय मुझे बैग के वजन का भी ध्यान रखना पड़ रहा था। चलने-बोलने और पसीने की वजह से पानी बहुत ज्यादा पी रहे थे सभी लोग।इस कांग्रेस में मैंने एक बात और देखी कि जहां-जहां कूलर लगे थे वहां कुछ लोग ऐसे कूलर के सामने बैठ या खड़े हो रहे थे मानो बाकियों को तो कंपकपी वाली ठंड लग रही थी,भाई गर्मी हो या सर्दी सभी को 19-20 एक जैसी ही लगती है !दूसरों से उनके हिस्से का आराम न छीना करिए !
"होटल मैनेजमेंट" के स्टूडेंट्स लगे थे काम में बिना किसी शिकवे-शिकायत के।खाना तो बहुत ही स्वादिष्ट,मसालों और सूखे -गीले का संतुलन सराहनीय था। इतने खाद्य पदार्थ थे कि एक प्लेट में मुश्किल से समा रहे थे।इतने दिन लगा ही नहीं कि हम खाना कहीं बाहर खा रहे हैं।मैं उन स्टूडेंट्स के धैर्य कि सराहना किए बिना नहीं रह सकती। पहले दिन तो उनलोगों को नास्ता करने का समय नहीं मिला क्योंकि लोगों कि ट्रेन-बस जैसे-जैसे पहुँच रहीं थीं वो भी उसी के अनुसार तैयार हो कर आने में थे। तब ना ही नास्ते का समय था और ना ही दोपहर के भोजन का। पर उन बच्चों ने सबकुछ सम्हाला। हाँ पहले दिन ही हमें पंजीकरण के साथ 9 जून तक के लिए खाने के कूपन मिले थे जिनके बिना हमें खाना नहीं मिलता। इससे कभी-कभी हमें अपनी "इमेज " खराब होने का खतरा लगता पर वो कुछ नहीं अनुशासन मात्र था।मैंने दूसरे दिन ही उनसे उनके सैफ के लिए इतना अच्छा भोजन कराने को धन्यवाद प्रेषित किया और उनकी पूरे समूह के धैर्य की हौसलाफजाई की तो उनके चहरे पे संतोष और ख़ुशी के जो भाव थे , देखते ही बन रहे थे। जो लोग रात के खाने से पहले जा रहे थे उनके लिए बड़े ही करीने से खाना पैक किया गया।आखिरी दिन रात के खाने के कूपन हमसे नहीं लिए गए वो अभी भी हमारे पास हैं।
हाँ एक बात मैं अपने इस यात्रा वृतांत के माध्यम से जरूर कहना चाहूंगी कि ऐसे किसी भी बड़े आयोजन में फिर चाहे वो शादी या किसी और प्रकार का आयोजन हो,यदि वहां मांसाहार और शाकाहार दोनों हैं तो स्टॉल तो अक्सर अलग-अलग होते हैं पर आवागमन एक जैसा होता है ,उसमें एक सुधार किया जा सकता है कि दोनों के प्रवेश-निकास द्वार ऐसे हों कि एक दूसरे में न खुलते हों। इससे जो लोग मांसाहार नहीं करते उनके लिए थोड़ी आसानी होगी और वो भी बिना डरे भोजन कर सकेंगे।"डर" शब्द का प्रयोग इसलिए कर रही हूँ कि ये सब देख भर लेने से अंदर तक रूहें काँप जातीं हैं मेरी तो। सबसे बड़ी समस्या तब आती है जब मांसाहार लेकर ही लोग शाकाहार वाले स्टॉल की ओर आकर कुछ और तलाशते हैं। फिर भी उन्हें शाकाहार से कुछ लेना ही है तो पहले शाकाहार से ले लें उसके बाद मांसाहार की ओर का रुख करें। मेरे सभी साथियों को पता था कि जैसे ही खाना खाने की बारी आती मैं अपना खाना ले कर अलग हो जाती। मेरा तो एक बार लेकर काम चल जाता है औरों का नहीं चलता और उन्हें दोबारा भी लेना होता है।
BGVS के अन्य राज्यों के पुराने साथी भी मिले जिनमें से कर्नाटक की प्रभा मैम भी शामिल रहीं। इतने दिन हमारी दिनचर्या एकदम टाइट रही एक के बाद एक कार्यक्रम चलते रहते। तीसरे दिन 8 जून के पहले सत्र में लिंग और सामाजिक न्याय,पर्यावरण।दूसरे सत्र में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और आजीविका आदि पर वक्तव्य हुए। अंत में कार्यशालाएं और विचार साझा हुए। सांस्कृतिक कार्यक्रम और वृत्तचित्र प्रदर्शन हुए। हिमाचल के दो साथियों से हमारी काफी बातें हुई जो फोटोग्राफी के शौकीन हैं और हमारे साथ इंस्टाग्राम पर भी जुड़े हैं। हमारे ग्रुप के मुझसे छोटे दो-तीन साथियों और इन फोटोग्राफी के शौकीनों से मिलकर एक बार मुझे अपने बड़े भतीजे ( शिवम ) के जैसे साथ होने का भ्रम भी हुआ। इनलोगों के लिए दुआएं अपने आप ही अंतर्मन में आती रहीं।
कांग्रेस में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर प्रदर्शनियां हुईं। 'हम भारत के लोग ' करके एक प्रदर्शनी भी लगाई गई। पोस्टर्स प्रदर्शन और 'अपने विचार साझा करें ' के लिए स्थान उपलब्ध रहे और विशेष विषय पर हस्ताक्षर बोर्ड भी लगाए गए थे। ओरियन इंटरनेशनल स्कूल के बच्चों द्वारा मॉडल भी बना कर लगाए गए।
प्रख्यात विशेषज्ञ पी साईनाथ,राजेश जोशी,बी इंदुमती,डी रघुनन्दन,सिदो कान्हो मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति,प्रो डॉ सोना झरिया मिंज,संविधान विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा का सशक्त व्याख्यान,दिनेश अब्रारोल,काशीनाथ चटर्जी ,डॉ डी एस दहिया ,डॉ सत्यजीत रथ,आशा मिश्र,आर रामानुज आदि के भी वक्तव्य रहे।चौथे दिन 9 जून को समापन सत्र जो मध्य प्रदेश पर केंद्रित था जिसमें अन्य गणमान्य लोगों के अतिरिक्त दिग्विजय सिंह जो मध्यप्रदेश राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता हैं भी उपस्थित रहे।समापन सत्र में,जन विज्ञान नेटवर्क की नई कार्यकरिणी का गठन भी हुआ जिसमें प्रो सत्यजीत रथ -अध्यक्ष ,आशा मिश्रा -महासचिव ,एस आर आजाद कोषाध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं
कार्यक्रम के अंत में उत्तराखंड से हमारे साथी सतीश धौलखंडी के नेतृत्व में जनगीत "लड़ते हुए सिपाही का गीत बनो रे……………. " की ओजपूर्ण प्रस्तुति में सभी ने बढ़चढ़ कर सहभागिता दिखाई।पूरे कार्यक्रम के समापन के बाद हम 6 लोगों ने भोपाल भ्रमण का दो-तीन घंटे का कार्यक्रम बनाया। 5 लोगों को ओला वाला ले जाने को तैयार नहीं हुआ सो हम ऑटो रिक्सा से सैरसपाटा गए। वहां झील के इस पार से उस पार जाने के लिए टिकट शायद 30 रूपए का। उसके बाद हम टॉय ट्रेन में भी बैठे। हमारी साथी अनीता मैम ने टॉय ट्रेन में बैठने की अपनी इच्छा की एक अनोखी कहानी बताई। कभी लिखूंगी उसपर भी एक छोटी सी कहानी।
उसके बाद "चटोरी गली" गए जहां से वो गली जिस बात के लिए जानी जाती वो सब गायब था करीब पिछले 5-6 सालों से। वापस हमलोगों ने एक ऑटो रिक्सा किया और ऑटो वाले से अनुरोध किया कि वो हमें आस-पास के मुख्य स्थान दूर से ही सही पर दिखा दे। सो भारत भवन,सीएम निवास,बड़ा तालाब आदि भी देख सके और रात करीब 8:45 पर हम अपनी मंजिल पर थे। 9:30 पर हम रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़े हमारी ट्रेन 10:30 की थी। सभी थके हुए थे तो सुबह 5-6 बजे ही सब उठे 9:15 पर हमलोग दिल्ली पहुँच गए थे मेरा भतीजा भी आ गया मुझे लेने उसके बाद ही हमारे बाकी साथी वहां से देहरादून के लिए निकले। मैंने कहा भी कि वो आ जाएगा आप लोग जाइए पर हमारे ग्रुप लीडर ने साफ कह दिया कि आपको भेजने के बाद ही जाएंगे। ये मात्र बड़े होने वाली जिम्मेदारी नहीं बल्कि हमसब का आपस में जुड़ाव है। अनीता मैम और मेरा काफी अच्छा तालमेल बैठा। उमा मैम के साथ सभी का बहुत-बहुत आभार इस यात्रा के लिए।यह सोलह आने सत्य है कि यात्राएं हमें और अधिक समृद्ध, सफल, सहनशील,और साहसी बनातीं हैं।
बहुत ही सुखद और अच्छे अनुभवों वाली रही मेरी भोपाल यात्रा, जिसे मात्र शब्दों में नहीं बताया जा सकता।
आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में।
धन्यवाद ! जयहिंद !
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